दिवाकर और नीलम
सुबह के सात बज रहे थे।
नीलम :पिताजी जल्दी क्यूँ चला रहे हैं साइकिल ,अपनी बेटी को भगाने का बड़ा शौक है , एक दिन जब चली जाऊँगी तब पता चलेगा फिर रोते रहना मेरे लिए......
पिताजी: अरे नहीं नहीं नीलम तुम्हारी गाढ़ी नहीं छुटनी चाहिए आखिरकार पुरे गांव से अकेली लड़की हो जो शहर जाकर नौकरी कर रही हो ,,तुम्हे पता भी नहीं है की कितना गर्व महसूस करता हूँ तुम्हे अपनी बेटी बोलकर। ...
नीलम:हाँ हाँ बस करिये मुझे पता है मक्खन लगा रहे ,मुझे याद है आपके लिए रेडियो लाना है नया कल भारत और वेस्ट इंडीज का मैच है फाइनल ,,:)
पिताजी: अरे नहीं नहीं बेटा ये दिल से बोल रहा और मैं तो भूल भी गया था की वो भी तो लाना है तुझे ,चल आछा है याद है तुझे वरना मैँ तो भूल ही जाता हूँ सब कुछ ,
सन १९८३
गाडी प्लेटफार्म पर आ ही गई थी नीलम जल्दी से चढ़ गई।
नीलम: पिताजी फुलवारी को खाना देदीजिएगा याद से। (फुलवारी उनकी गाय थी )
पिताजी: अरे हाँ हाँ तू बस अपना ख़याल रखना यहाँ की चिंता मत कर
ये बातें रोज़ की थी जब तक गाडी प्लेटफार्म से निकल नही जाती। ..गाडी जा चुकी थी नीलम के रोज़ की तरह अपने पिताजी से दूर होने के ग़म में बहते ही थे हालाँकि ये कुछ समय के लिए ही दूर रहते थे पर माँ के गुज़र जाने के बाद से उसने ही अपने पिताजी का ख्याल रखा था।
गाड़ी हमेशा की तरह भरी हुई थी। रोज़ नीलम खड़े होकर ही जाती थी। पर आज एक अलग बात ने उसे चौंका दिया ,एक लड़के की आवाज़ ने उसे हिला दिया।
दीवाकर : जी आप मेरी जगह पर बैठ जाइए मैं खड़ा हो जाता हूँ।
नीलम को किसी ने ऐसे नहीं पूछा था ,नीलम वहां बैठ तो गई पर वो समझ रही थी की हो सकता है वो लड़का उसके पीछे पड़ा हो तभी उसका दिल जीतने के लिए कर रहा। नीलम खिड़की के बहार देखने लग गई पर उसके दिमाग में उसके पिताजी की कही बातें कभी उतरती नहीं थी सावधानी उसके लिए बहुत ज़रूरी था। धीरे से उसने अपना बस्ता ज़मीन में गिराया और बहाने से उसने उस लड़के को देखा की कहीं वो उसे ही तो नहीं घूर रहा।
नज़र ऊपर की ही थी की उसके लिए सब बदल गया। वो लड़का दरवाज़े की तरफ खड़ा था, हवा से उसके बाल उड़ रहे थे ,रंग में गोरा ,अच्छा कद था उसका। वो लड़का दरवाज़े के बाहर देख रहा था। नीलम की नज़रें उससे हट ही नहीं रही थी ,
नीलम:(खुदसे ) ये क्या कर रही है नीलम कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा ,अपनी नज़र हटा वहाँ से वरना लोगों को क्या लगेगा।
पर अब प्यार तो प्यार है जो आज नीलम को कैद कर रहा था। नज़रें खिड़की पर कम और दरवाज़े पर ज़्यादा थी। ....
उस लड़के की तरफ देख रही थी की वो घूम के खड़ा हुआ और उसने देखा की नीलम के सामने वाली जगह खली है ,वो आया और आराम से बैठ गया ,उसके बैठते ही नीलम को समझ नहीं आ रहा था की कैसे वो अपने आपको संभाले
अब तिरछी निगाहों से देखने लगी। उस लड़के ने गर्दन टेढ़ी करि खिड़की के सहारे रखी और सो गया।
नीलम : नीलम बेटा देखले अब जी भर के खिड़की के बहार से थोड़ी आएगा कोई तुझे पकड़ने की क्यूं देख रही (और ये सोच क्र हँसने लगी नीलम )
लड़का अचानक उठा और चल दिया ,,नीलम की खुशियों को नज़र लग गई थी वो अपने आपको हिम्मत नहीं दे पा रही थी की कैसे भी उसे बोल्ड की कल भी आना मिलने ,लेकिन जा चुका था
शाम को शहर से लौट ते वक़्त भी वो यही सोच रही थी की आज उसने सब कुछ खो दिया पहली बार पिताजी के इलावा किसी के जाने पर दुःख हो रहा था। .निगाहें ढूंढती रही पर वो लड़का नहीं आया तो नहीं आया।
रात के वक़्त
पिताजी : बेटा कल तो छुट्टी होगी।
नीलम :(धीमी आवाज़ में ) क्यूँ कल क्या है ?
पिताजी: कल पहली बार भारत का फाइनल है।
नीलम :नहीं जी मेरी कोई छुट्टी नहीं है (गुस्से में )
पिताजी: ठीक है गुस्सा क्यूँ कर रही चली जाना।
सुबह सात बजे
नीलम: पिताजी जल्दी जल्दी चलाइए गाडी छूट जाएगी (नीलम गाडी नहीं छोड़ना चाहती थी क्यूंकि इसी समय वाली में वो लड़का मिला था )
पिताजी: अरे क्या हो गया है तुझे कल से देख रहा हूँ आज तक तो रोज़ सुनाती थी पर आज तो देखो ज़रा, बिलकुल अपनी माँ पर गई है कभी समझ नहीं आता क्या करूँ।
नीलम गाडी में घुसी और किसी पुलिस वाले की तरह निगरानी करने लगी पर कुछ हाथ नहीं लगा हताश नीलम बैठ गई खिड़की की तरफ। कुछ दूर जाने पर उसने देखा बहार सड़क की तरफ वही लड़का साइकिल पर बैठा जा रहा था ,,खुश तो बहुत हुई पर नीलम को अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था की कल सामने था तो बोल नहीं पाई आज बोलना चाहती हूँ तो वो पास नहीं और अब गाडी उससे कई दूर जा चुकी थी।
नीलम:(अपने आप से ) नीलम तू एक काम कर ये गांव भी तो तुम्हारे गांव से तेन गांव दूर है कल एक काम कर छुट्टी ले और साइकिल से आकर इससे मिल। और हाँ चिट्ठी में लिखेगी या सीधे बोलेगी।
नीलम ने सुना तो था की उसके कई दोस्त है जिनको कई लड़कों ने बोला था पर कभी उसने ये नहीं सुना था की किसी लड़के ने अपने आपसे ऐसा कुछ किआ करो पर हिम्मती लड़की थी खत ही लिखलिया
अगले दिन
नीलम: पिताजी आज मेरी छुट्टी है रुपाली के घर जा रही हूँ ।
और साइकिल उठाई हालाँकि पिताजी के अलावा साइकिल से कहीं नहीं गई थी पर हिम्मती तो थी और ऊपर से प्यार की ताकत और खींच रही थी। चल पड़ी वो उस गांव की तरफ रस्ते भर सोचते सोचते वो न जाने कब उस गांव पहुँच गई। ......काफी मेहनत के बाद वो वहां पहुँच गई पर अभी भी उसे पता नहीं था की उस लड़के को ढूंढेगी कहा से।
तीन चार घंटे वहीँ कड़ी रही पर वो नहीं आया ,
नीलम :(रोते हुए अपने आप से ) नीलम तेरी किस्मत में ही नहीं है ये मिलना चल तू वापिस चल अचे लोगों के साथ कभी एच नहीं होता।
नीलम पलटी और वापिस चल दी। वापिस जाते हुए उसने फिर वही आवाज़ सुनी
दीवाकर : जिससे मिलने आई हो उससे मिलकर नहीं जाओगी।
नीलम : किस से मिलने आई हूँ क्या बोल रहे हो।
दीवाकर ने उसके हाथ में कुछ देखा और छीन लिया ,खत पढ़ते ही उसके आंसू आ गए.दिवाकर एक किसान था और अकेला भी उसके माता पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। और उसके लिए इतना किसी ने नहीं किआ था। दिवाकर ने हाथ नीलम की तरफ बढ़ाया और उसे अपनी बाँहों में भर लिआ। नीलम की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था
नीलम: दिवाकर तुम्हे मेरे पिताजी के साथ रहना होगा चलेगा।
दिवाकर के चेहरे पर सिर्फ मुस्कान थी।
सुबह
आज फिर गाड़ी आवाज़ दे रही थी और प्लेटफार्म से निकलने वाली थी नीलम आज भी साइकिल चलाने वाले पर चिल्ला रही थी की देर करदी अर आज साइकिल दिवाकर चला रहा था।
समाप्त