Tuesday, September 5, 2017


                               
                              अन्जान 

संजीव गांव से दूर खेतों के पास में दो मंज़िलो के मकान में  रहता था , घर में कोई नहीं पर सामान सारा था टीवी फ्रिज वगेरा अरे  गांव में तो ये भी खबर थी की  चाँदी का भण्डार था उसके घर में इसी वजह से संजीव किसी पर भी भरोसा नहीं  करता था 
रात होते ही ताला किवाड़े पर न कोई चोरी कर ले जाए। .. संजीव बहुत ही हिम्मती और चतुर था। ..रात में किसी के लिए किवाड़े खुलते। .संजीव हमेशा सबसे बोलता  मैं मेरे चाँदि के सिवा कुछ भी नहीं। .. 
हर रात की तरह ताला लगा ही रहा था की दरवाज़े पर कुछ थप  थप हुई गुस्सा आया चुप चाप वह खड़ा हो गया की कोई होगा तो खुद चला जाएगा पर दो मिनट बात तक थप थप हुई  संजीव को शक हुआ की इतनी  रात में नहीं आता अब उसने खिड़की के परदे से झाका तो बारिश में कुछ दिखा नहीं बस एक आदमी सा दिखाई दिआ खुद से बोला क्या ही  काम होगा देखते हैं। 
दरवाज़ा खोला तो एक सूट में आदमी खड़ा था सर पर बाल नहीं आँखों में पानी और बारिश में भीगा हुआ हाथ जोड़े था। ..घबराते हुए आदमी बोला 
आदमी -भ भ  भ भाई मदद की ज़रूरत है चलिए  वहां एक गाडी है जहां मेरा दोस्त फसा हुआ है आप चलकर कुछ  करदिजिए।  
संजीव -  घबराइए मत ! पानी लाता हूँ फिर देखते  हैं 
किचन में जाते ही संजीव खुद ही झूझने लगा की क्या ये कोई चोर है या कोई डकैत ऐसे कोई तो गड़बड़ है संजीव हिम्मती तो था ही अपनी रिवॉल्वर निकली रखी अपने पास और गिलास में पानी लेकर आया साथ में मेज़ में पिस्तौल भी रखी अब उसे लगा की चोर होगा तो डर जाएगा और चला जाएगा। पर वो पानी पिते ही फिर रोने सा लगा की जल्दी करिऐ  वरना वो मर जाएगा 
शक के बादल को लेकर साथ चलदिआ  साइकिल उठाई और उस भीगते इंसान के साथ चलदिआ। ... रास्ते भर यही सोचता रहा की क्या ये कोई षड्यंत्र  है या कोई खेल जो उसके साथ हो रहा हो पर हिम्मत बांधें चलता रहा। ..  रात तो थी ही ऊपर से खेतों में तो और डर रेहता है  रात में। ....कुछ दूर पर उसे कुछ दिखाई दिया कार कड़ी थी  टेढ़ी दरवाज़े खुले और कोई मदद  बुला रहा था वो दौड़ के गया तो एक आदमी दर्द में काररहार था संजीव ने एम्बुलेंस को फ़ोन किआ तो फ़ोन नहीं लग रहा था अब वो घबराने लगा देखा तो एक एम्बुलेंस आ रही थी उसे लगा किसी ने बुलाई होगी किसी ने 
एम्बुलेंस आई और लोग उतरे आदमी को बैठाया तो उसका बटुआ गिर गया उसे खोला तो इसमें चित्र था वो  चित्र तो देखा सा लग रहा था ध्यान से देखा तो उसे याद आया की ये आदमी तो  लाया है उसे यहाँ। ..ये सब समझते ही पीछे मुडा तप उसने देखा वो कहीं भी नहीं था वहां वो डर गया उसने एम्बुलेंस रुकवाई और उससे पूछा ये जो आपके बटुए  में चित्र है ये कौन है यही मुझे ले कर आए थे यहां 
आदमी- हॅंसकर की भाई ये कभी हो ही नहीं सकता ये तो पांच  साल पहले ही  मर चूका है ये मेरा दोस्त था 
संजीव डर गया और वापिस सीधे घर की  भागा ,,,, पुरे रास्ते वो खुद से उलझता रहा और डरता रहा। ...... 
घर जाते ही पानी पीने लगा की दरवाज़े पर फिर से थप थप हुई डरते डरते कब संजीव ने किवाड़ा खोला था तो एक आदमी भीगा हुआ खड़ा था और  संजीव के ध्यान देने पर उसने देखा की इस बार वही रोति आंखें वही मदद मांगने वाली बात वही रुक रुक के घबराना पर आदमी वो था जिसे वो भी एम्बुलेंस मेबैठालकर आया था। 

Friday, July 14, 2017

               Life is simple


Life is confusing becoz it have always got two options for everything ; consider it the way of choosing your life with living someone and without someone you can trip in both ways ,consider it choosing a professional future ;  again you got two choices, either live with the thought of being something valuable or just be the
"valuable ",again consider it happiness or pain there is again two choices therE is no in between of being less in pain or hapPiness
Pain is a pain and happiness is what it looks like , so giving a thought that you might not take a decision and how would you live in future , don't just only talk to your mind , talk to your core what your core is deciding for you coz in any situation you can live  with life, it  always have its own ways;  fear nothing  in this entire life ,people does several  work to convince them that they would have done a lot better but if that would have happen this situation you are on would have been not discovered by you , people out there reading this should really understand this that the work you do , name it work , party,  poetry , sports , shopping even romance you are the only one who chose this to be so live with the ultimate truth that life don't surprise.  You its you And your decisions who plays role so admire yourself and start loving everything about you because  each day you should remember that you wanted to for the old days
Life is simple admire it

Tuesday, July 4, 2017

                     अकड़ और  चतुराई
       


सात बजे की गाडी आज नौ बजे  करीब स्टेशन के दूर कोने से चली आ  रही थी लोग अपना अपना बक्सा  जो भी उनके पास था लिए दौड़ रहे थे पर इधर कन्हईया अपना सुबह का अखबार और चाय लिये राज काज समझ  रहा था की तभी पिताजी की फटकार ने सब मज़ा खराब कर दिया
पिताजी : कन्हैय्या तू जाता है मैं अपाहिज जाऊँ पैसे के लिए गाडी के अंदर पूरी सब्ज़ी बेचने
 कन्हैया : पिताजी आप क्यूँ गुस्सा करते हैं मैं ही जाता हूँ।
कन्हैया के पिताजी  युहीं स्टेशन में काम करते अपने पाऊं खो चुके अब कन्हैया १३  साल के होने के बाद भी ये काम करता है कन्हैया एक बहुत ही सुन्दर और मेहनती बच्चा है इस उम्र में अपने साथ साथ पिताजी को भी रोटी देता है

कन्हैया अपने सामान के साथ चल दिआ गाडी की और उसके लिए हर गाड़ी का रंग रूप सब एक जैसा था उसे न ही मतलब होता था की कौन सी गाडी कौन सा वक़्त  है बस घुस जाता था अपने सामान को बेचने की तभी उसके कानों में किसी की आवाज़ पड़ी की भोपाल के सबसे बड़े आदमी की सबसे मेहेंगा हीरा चोरी हुआ है ये सब सुनकर उसके  मन में बहुत से सवाल आने लगे पर रुकती गाडी  सब हटा दिए कन्हैया दौड़ते हुए गाडी में घुस गया आज बहुत भीड़ के कारन उसकी बिक्री बहुत हुई पर बोलते हैं न खुशियां ज़्यादा देर  मेहमान नहीं होती दरवाज़े से उतर ही  चार पांच लड़कों की भीड़ चढ़ी और कन्हैया को धक्का दिए और गाडी के अंदर आ गए
गुस्से में  कन्हैया लड़ पड़ा और बच्चा समझ उन्होंने उसे उठाया और ऊपर वाली जगह पर बैठा दिया कन्हैया  वाला था
ढीट बनकर वही बैठा रहा उसका लड़कपन देख कर लड़कों ने बात को गंभीर और बेइज़्ज़िति के रूप में लिया।
कन्हैया निडर होकर वही बैठा रहा
गाडी में कई लोग  थे जो ये सब देखकर खुश नहीं थे पर शायद वो और लड़के सब रोजाना साथ सफर करते थे सुर वो उन लड़कों से डरते भी थे
इन सब लोगों को देखकर कन्हैया की  उम्मीद भी नहीं लगा रहा था उसे एक आदमी दिखा जो बैठा तो वही था पर वहाँ ये सब देख रहा था ये ज़रा  कन्हैया के समझ के बहार था देखने में गोरा हाथ में कड़ा आँखों में चश्मा टोपी वगेरा सब था पर वो इधर होते हुए क्यों नहीं देख रहा अब कन्हैया को इन लड़कों से ज़्यादा उस आदमी में ध्यान लगा हुआ था की तभी एक  थप्पड़ ने सारे तारे हिला दिए थे गुस्सा चरम पर पहुंच गया उसका मुँह लाल होते देख लड़कों ने उसे उठाया और गाडी से बहार  कूदा दिआ
 आज दिन में इतना बुरा हुआ की अपने पिताजी को भी नहीं बताया कन्हैया नहीं तो खुद तकलीफ झेलने चले जाते पर कन्हैया को बचाएंगे इन सब से। ...... कन्हैया का गुस्सा शांत होने का नाम ही न ले पर आज उस गुस्से से ज़्यादा
उसके दिमाग में उस आदमी प्रति सवाल थे
कन्हैया खुद से : हो सकता है बहरा हो या अंधा पर उसने उसके कानों की हरकत देखि थी वो बहरा तो नहीं था अगर वो सिर्फ बहरा होता तो इधर उधर ज़रूर करता की क्या हो रहा है या कुछ

अगले दिन की सुबह कन्हैया के लिए बदला लेनी की थी पर उसने खुद को समय दिआ और खुद को ये विश्वास दिलाया की पहले उसके बारे में जानूंगा तभी बदला लूंगा और बदला तो कभी भी लेलूं
आज भी उसी डब्बे में  चढ़ा जिसमे कल था आज भी वही लड़के मिले और खेलते रहे कूदते रहे पर कन्हैया की नज़र सिर्फ
उस आदमी पर थी आज तो और यकीन हो गया जब कन्हैया ने उसे बार बार सपने बास्ते को खाकोलते देखा कल तक जो  बोल सुन नहीं पा रहा था आज वो बस्ता  देख रहा ये सब सही से पता चल था था की किसीने पीछे से पूरी उठाली उसमे झगड़ा जो गया लड़कों ने कन्हैया को बहुत पीट दिआ और बाहर धक्का दिए की कल से यहां दिख मत जाना वरना मार देंगे रोता रोता कन्हैया जाकर बिस्तर पर सो गया
आज सुबह से ही गुस्सा लिए कन्हैया स्टेशन पहुंचा आज कुछ  करके उन्हें समझाना था पर उसे कुछ  समझ ही नहीं आ रहा था गाडी आज फिर थोड़ी देर से आई कन्हैया लाल मुँह लेकर आज फिर हार सामना करने के लिए खुदको शांत कर लिआ घुसते ही उसे वो लड़के दिखने लगे तभी उसे दो पोलिसवाले वहीँ दिखाई दिए उन दोनों अफसरों को देखकर कन्हैया के दिमाग में एक ऐसी बात आई जिसने उसे फिर से शक्ति धारक बना दिआ
पूरी पूरी चिल्लाते हुए वो आगे बढ़ा की उसने लड़कों  को पासजसकर जानबूझकर उनके पैरों में चढ़ने लगा गुस्से में लड़कों ने उसे फिर ऊपर बैठा दिआ ये देखकर पोलिसवाले वहाँ आ गए बेहेस करते देख लड़के घबरा गए पर कन्हैया का शिकार तो कोई और ही था पुलिसवालों को कन्हैया ने इशारा किआ की मुझे लगता ही जो भी चोरी भोपाल में हुई  बड़ी उसके पीछे उस अंधे लड़के का है जो की सिर्फ यहां पर नाटक कर रहा और वो ये बात साबित  कर सकता है
उसके कहने पर तलाशी होने लगी आदमी जो अभी तक बोल नहीं रहा था अब वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा पोलिसवाले जैसे ही उसने तलाशी ली उस आदमी के पास हीरा और बी बरामदी सामान मिला।
गाडी रुकवा कर उसे ले जाया जा रहा था की कन्हैया के दिमाग में बदले की आग जाली और उसने पुलिसवालो को बोल दिआ की ये अकेला नहीं हैं कुछ लड़के भी जो इसको मदद करते हैं , पर नहीं पता था की उन लड़किन के पास भी चोरी का सामान था  ये सब तलाशी के बाद उन लड़कों को चखाया  उसे ये भी नहीं पता था की उन सारे लड़कों को चोरी चाकरी  ही काम  और धाम है
कन्हैया ने एक तीर से दो निशाने करते हुए  फसा दिए
शहर के बड़े से आदमी ने जिसने इतना कीमती हिरा मिला हो उसने लाल चौक पर कन्हैया के लिए दूकान खोली जहाँ अब कन्हिया कुर्सी  पर बैठकर सिर्फ आवाज़ लगता है और सारा काम खुद संभालता है

Monday, April 24, 2017



                सबसे बड़ी ताकत



टूटी छत  के टपकते पानी से अपने लाल को बचाया है
ठण्ड न लग जाए कहीं उसे तो खुद को भिगाया है
डूब रही हो कितनी  ख्वाइशें  लाल की
 हर बार  हाथ लगा कर उसने डूबने से बचाया है
 मुड़ कर  देखो जिस भी पल की ओर
उस लाल  की माँ ने हमेशा गले से ही लगाया है

हस्ते खेलते वो साथ  बड़े होते हैं
कुछ  खट्टे  मीठे पल उनके  साथ बुनते हैं
दिल में प्यार से भी ज़्यादा जगह बनाती हैं
कोई भी  रिश्ता  नहीं जीतता जब दो बहनें साथ निभाती हैं


परीवार को उसने बनाया है
जीना सिर्फ उसने ही सिखाया है
कंधे पर रखकर हमको उसने
दुनिया  का रंग दिखाया है
हाथ में उसके छाले थे और घर पर अनाज के लाले थे
पर तोड़ कर अपनी रोटी  का टुकड़ा हर बार हमको खिलाया है
आँख में उसके आंसूं हैं पर हमको वो मालूम नहीं क्यूंकि
उसने हमारे हर सपने को अपनी आंखों  सजाया है
चाहे कितने ही हो दुश्मन दुनिया में मगर सबसे
ताक़तवर भगवान ने पिता को बनाया है




Sunday, April 16, 2017

                     खुद की ताक़त


छोड़ दिआ है खुदको की जा उड़
बोल दिआ रस्ते से की अब कहीं भी तू मुड़
खोल के नज़रें ऊपर दिशा  की तरफ हैं लगाई
की जो दृश्य है खुले आसमान का उनसे मेरी उमीदें रहीं है जुड़

बिछा के अरमानों की चादर मैंने उम्मीद में बढ़ना सीखा है
लाख हो ऊँचा पहाड़ उसपर चढ़ना सीखा है
टूट तो रहे थे सारे किले मेरे सपनो के मगर
उसी रेत के किले को फिर से खड़ा करना सीखा है

हाथों में बनी लकीर को पढ़ने से कुछ हासिल नहीं होता
बनी बनाई  दुनिया की रीतों में रहने से कुछ नहीं होता
जो रेस में जीतते है वो तो बस महज़ दुनिया के सामने होते हैं पर
पर जो रोज़ गिर कर चलतें हैं उनसे ज़्यादा कोई काबिल नहीं होता

सामना करते करते लड़ने लगता है हर कोई
अपनी हार देखकर खुद से झगड़ने लगता है हर कोई
डर होता ही इसलिए है हमारे लिए
की सामना होते ही टूटी डोर पकड़ने लगता है हर कोई 

Friday, February 10, 2017

                                               दिवाकर और नीलम

सुबह के सात बज रहे थे।

नीलम :पिताजी जल्दी क्यूँ चला रहे हैं साइकिल ,अपनी बेटी को भगाने का बड़ा शौक है , एक दिन जब चली जाऊँगी तब पता चलेगा फिर रोते रहना मेरे लिए......
पिताजी: अरे नहीं नहीं नीलम तुम्हारी गाढ़ी नहीं छुटनी चाहिए आखिरकार पुरे गांव से अकेली लड़की हो जो शहर जाकर नौकरी कर रही हो ,,तुम्हे पता भी नहीं है की कितना गर्व महसूस करता हूँ तुम्हे अपनी बेटी बोलकर। ...
नीलम:हाँ हाँ बस करिये मुझे पता है मक्खन लगा रहे ,मुझे याद है आपके लिए रेडियो लाना है नया कल भारत और वेस्ट इंडीज का मैच है फाइनल ,,:)
पिताजी: अरे नहीं नहीं बेटा ये दिल से बोल रहा और मैं तो भूल भी गया था की वो भी तो लाना है तुझे ,चल आछा है याद है तुझे वरना मैँ तो भूल ही जाता हूँ सब कुछ ,

सन १९८३
गाडी प्लेटफार्म पर आ ही गई थी नीलम जल्दी से चढ़ गई।
नीलम: पिताजी फुलवारी को खाना देदीजिएगा याद से। (फुलवारी उनकी गाय थी )
पिताजी: अरे हाँ हाँ तू बस अपना ख़याल रखना यहाँ की चिंता मत कर

ये बातें रोज़ की थी जब तक गाडी प्लेटफार्म से निकल नही जाती। ..गाडी जा चुकी थी नीलम के रोज़ की तरह अपने पिताजी से दूर होने के ग़म में बहते ही थे हालाँकि ये कुछ समय के लिए ही दूर रहते थे पर माँ के गुज़र जाने के बाद से उसने ही अपने पिताजी का ख्याल रखा था।

गाड़ी  हमेशा की तरह भरी हुई थी। रोज़ नीलम खड़े होकर ही जाती थी। पर आज एक अलग बात ने उसे चौंका दिया ,एक लड़के की आवाज़ ने उसे हिला दिया।
दीवाकर : जी आप मेरी जगह पर बैठ जाइए मैं खड़ा हो जाता हूँ।
नीलम को किसी ने ऐसे नहीं पूछा था ,नीलम वहां बैठ तो गई पर वो समझ रही थी की हो सकता है वो लड़का उसके पीछे पड़ा हो तभी उसका दिल जीतने के लिए कर रहा। नीलम खिड़की के बहार देखने लग गई पर उसके दिमाग में उसके पिताजी की कही बातें कभी उतरती नहीं थी सावधानी उसके लिए बहुत ज़रूरी था। धीरे से उसने अपना बस्ता ज़मीन में गिराया और बहाने से उसने उस लड़के को देखा की कहीं वो उसे ही तो नहीं घूर रहा।


नज़र ऊपर की ही थी की उसके लिए सब बदल गया। वो लड़का दरवाज़े की तरफ खड़ा था, हवा से उसके बाल उड़ रहे थे ,रंग में गोरा ,अच्छा कद था उसका। वो लड़का दरवाज़े के बाहर देख रहा था। नीलम की नज़रें उससे हट ही नहीं रही थी ,

नीलम:(खुदसे ) ये क्या कर रही है नीलम कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा ,अपनी नज़र हटा वहाँ  से वरना लोगों को क्या लगेगा।

पर अब प्यार तो प्यार है जो आज नीलम को कैद कर रहा था। नज़रें खिड़की पर कम और दरवाज़े पर ज़्यादा थी। ....
उस लड़के की तरफ देख रही थी की वो घूम के खड़ा हुआ और उसने देखा की नीलम के सामने वाली जगह खली है ,वो आया और आराम से बैठ गया ,उसके बैठते ही नीलम को समझ नहीं आ रहा था की कैसे वो अपने आपको संभाले
अब तिरछी निगाहों से देखने लगी। उस लड़के ने गर्दन टेढ़ी करि खिड़की के सहारे रखी  और सो गया।

नीलम : नीलम बेटा देखले अब जी भर के खिड़की के बहार से थोड़ी आएगा कोई तुझे पकड़ने की क्यूं देख रही (और ये सोच क्र हँसने लगी नीलम )

लड़का अचानक उठा और चल दिया ,,नीलम की खुशियों को नज़र लग गई थी वो अपने आपको हिम्मत नहीं दे पा रही थी की कैसे भी उसे बोल्ड की कल भी आना मिलने ,लेकिन जा चुका था

शाम को शहर से लौट ते वक़्त भी वो यही सोच रही थी की आज उसने सब कुछ खो दिया पहली बार पिताजी के इलावा किसी के जाने पर दुःख हो रहा था। .निगाहें ढूंढती रही पर वो लड़का नहीं आया तो नहीं आया।

 रात के वक़्त

पिताजी : बेटा कल तो छुट्टी होगी।
नीलम :(धीमी आवाज़ में ) क्यूँ कल क्या है ?
पिताजी: कल पहली बार भारत का फाइनल है।
 नीलम :नहीं जी मेरी कोई छुट्टी नहीं है (गुस्से में )
पिताजी: ठीक है गुस्सा क्यूँ कर रही चली जाना।


सुबह सात बजे

नीलम: पिताजी जल्दी जल्दी चलाइए गाडी छूट जाएगी (नीलम गाडी नहीं छोड़ना चाहती थी क्यूंकि इसी समय वाली में वो लड़का मिला था )
पिताजी: अरे क्या हो गया है तुझे कल से देख रहा हूँ आज तक तो रोज़ सुनाती थी पर आज तो देखो ज़रा, बिलकुल अपनी माँ पर गई है कभी समझ नहीं आता क्या करूँ।


नीलम गाडी में घुसी और किसी पुलिस वाले की तरह निगरानी करने लगी पर कुछ हाथ नहीं लगा हताश नीलम बैठ गई खिड़की की तरफ। कुछ दूर जाने पर उसने देखा बहार सड़क की तरफ वही लड़का साइकिल पर बैठा जा रहा था ,,खुश तो बहुत हुई पर नीलम को अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था की कल सामने था तो बोल नहीं पाई आज बोलना चाहती हूँ तो वो पास नहीं और अब गाडी उससे कई दूर जा चुकी थी।

नीलम:(अपने आप से ) नीलम तू एक काम कर ये गांव भी तो तुम्हारे गांव से तेन गांव दूर है कल एक काम कर छुट्टी ले और साइकिल से आकर इससे मिल। और हाँ चिट्ठी में लिखेगी या सीधे बोलेगी।
नीलम ने सुना तो था की उसके कई दोस्त है जिनको कई लड़कों ने बोला था पर कभी उसने ये नहीं सुना था की किसी लड़के ने अपने आपसे ऐसा कुछ किआ करो पर हिम्मती लड़की थी खत ही लिखलिया


अगले दिन

नीलम: पिताजी आज मेरी छुट्टी है रुपाली के घर जा रही हूँ ।

और साइकिल उठाई हालाँकि पिताजी के अलावा साइकिल से कहीं नहीं गई थी पर हिम्मती तो थी और ऊपर से प्यार की ताकत और खींच रही थी। चल पड़ी वो उस गांव की तरफ रस्ते भर सोचते सोचते वो न जाने कब उस गांव पहुँच गई। ......काफी मेहनत के बाद वो वहां पहुँच गई पर अभी भी उसे पता नहीं था की उस लड़के को ढूंढेगी कहा से।
तीन चार घंटे वहीँ कड़ी रही पर वो नहीं आया ,

नीलम :(रोते हुए अपने आप से ) नीलम तेरी किस्मत में ही नहीं है ये मिलना चल तू वापिस चल अचे लोगों के साथ कभी एच नहीं होता।

नीलम पलटी और वापिस चल दी। वापिस जाते हुए उसने फिर वही आवाज़ सुनी
दीवाकर : जिससे मिलने आई हो उससे मिलकर नहीं जाओगी।
नीलम : किस से मिलने आई हूँ क्या बोल रहे हो।

दीवाकर ने उसके हाथ में कुछ देखा और छीन लिया ,खत पढ़ते ही उसके आंसू आ गए.दिवाकर एक किसान था और अकेला भी उसके माता पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। और उसके लिए इतना किसी ने नहीं किआ था। दिवाकर ने हाथ नीलम की तरफ बढ़ाया और उसे अपनी बाँहों में भर लिआ। नीलम की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था

नीलम: दिवाकर तुम्हे मेरे पिताजी के साथ रहना होगा चलेगा।
दिवाकर के चेहरे पर सिर्फ मुस्कान थी।

सुबह
आज फिर गाड़ी आवाज़ दे रही थी और प्लेटफार्म से निकलने वाली थी नीलम आज भी साइकिल चलाने वाले पर चिल्ला रही थी की देर करदी अर आज साइकिल दिवाकर चला रहा था।


समाप्त