खुद की ताक़त
छोड़ दिआ है खुदको की जा उड़
बोल दिआ रस्ते से की अब कहीं भी तू मुड़
खोल के नज़रें ऊपर दिशा की तरफ हैं लगाई
की जो दृश्य है खुले आसमान का उनसे मेरी उमीदें रहीं है जुड़
बिछा के अरमानों की चादर मैंने उम्मीद में बढ़ना सीखा है
लाख हो ऊँचा पहाड़ उसपर चढ़ना सीखा है
टूट तो रहे थे सारे किले मेरे सपनो के मगर
उसी रेत के किले को फिर से खड़ा करना सीखा है
हाथों में बनी लकीर को पढ़ने से कुछ हासिल नहीं होता
बनी बनाई दुनिया की रीतों में रहने से कुछ नहीं होता
जो रेस में जीतते है वो तो बस महज़ दुनिया के सामने होते हैं पर
पर जो रोज़ गिर कर चलतें हैं उनसे ज़्यादा कोई काबिल नहीं होता
सामना करते करते लड़ने लगता है हर कोई
अपनी हार देखकर खुद से झगड़ने लगता है हर कोई
डर होता ही इसलिए है हमारे लिए
की सामना होते ही टूटी डोर पकड़ने लगता है हर कोई
छोड़ दिआ है खुदको की जा उड़
बोल दिआ रस्ते से की अब कहीं भी तू मुड़
खोल के नज़रें ऊपर दिशा की तरफ हैं लगाई
की जो दृश्य है खुले आसमान का उनसे मेरी उमीदें रहीं है जुड़
बिछा के अरमानों की चादर मैंने उम्मीद में बढ़ना सीखा है
लाख हो ऊँचा पहाड़ उसपर चढ़ना सीखा है
टूट तो रहे थे सारे किले मेरे सपनो के मगर
उसी रेत के किले को फिर से खड़ा करना सीखा है
हाथों में बनी लकीर को पढ़ने से कुछ हासिल नहीं होता
बनी बनाई दुनिया की रीतों में रहने से कुछ नहीं होता
जो रेस में जीतते है वो तो बस महज़ दुनिया के सामने होते हैं पर
पर जो रोज़ गिर कर चलतें हैं उनसे ज़्यादा कोई काबिल नहीं होता
सामना करते करते लड़ने लगता है हर कोई
अपनी हार देखकर खुद से झगड़ने लगता है हर कोई
डर होता ही इसलिए है हमारे लिए
की सामना होते ही टूटी डोर पकड़ने लगता है हर कोई
Amazing poem. Beautifully portrayed the truth.
ReplyDeleteThnq 😇
DeleteBeautiful poem 👍👌
Deletenice poem
ReplyDeleteNice one 😍😍
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