Tuesday, September 5, 2017


                               
                              अन्जान 

संजीव गांव से दूर खेतों के पास में दो मंज़िलो के मकान में  रहता था , घर में कोई नहीं पर सामान सारा था टीवी फ्रिज वगेरा अरे  गांव में तो ये भी खबर थी की  चाँदी का भण्डार था उसके घर में इसी वजह से संजीव किसी पर भी भरोसा नहीं  करता था 
रात होते ही ताला किवाड़े पर न कोई चोरी कर ले जाए। .. संजीव बहुत ही हिम्मती और चतुर था। ..रात में किसी के लिए किवाड़े खुलते। .संजीव हमेशा सबसे बोलता  मैं मेरे चाँदि के सिवा कुछ भी नहीं। .. 
हर रात की तरह ताला लगा ही रहा था की दरवाज़े पर कुछ थप  थप हुई गुस्सा आया चुप चाप वह खड़ा हो गया की कोई होगा तो खुद चला जाएगा पर दो मिनट बात तक थप थप हुई  संजीव को शक हुआ की इतनी  रात में नहीं आता अब उसने खिड़की के परदे से झाका तो बारिश में कुछ दिखा नहीं बस एक आदमी सा दिखाई दिआ खुद से बोला क्या ही  काम होगा देखते हैं। 
दरवाज़ा खोला तो एक सूट में आदमी खड़ा था सर पर बाल नहीं आँखों में पानी और बारिश में भीगा हुआ हाथ जोड़े था। ..घबराते हुए आदमी बोला 
आदमी -भ भ  भ भाई मदद की ज़रूरत है चलिए  वहां एक गाडी है जहां मेरा दोस्त फसा हुआ है आप चलकर कुछ  करदिजिए।  
संजीव -  घबराइए मत ! पानी लाता हूँ फिर देखते  हैं 
किचन में जाते ही संजीव खुद ही झूझने लगा की क्या ये कोई चोर है या कोई डकैत ऐसे कोई तो गड़बड़ है संजीव हिम्मती तो था ही अपनी रिवॉल्वर निकली रखी अपने पास और गिलास में पानी लेकर आया साथ में मेज़ में पिस्तौल भी रखी अब उसे लगा की चोर होगा तो डर जाएगा और चला जाएगा। पर वो पानी पिते ही फिर रोने सा लगा की जल्दी करिऐ  वरना वो मर जाएगा 
शक के बादल को लेकर साथ चलदिआ  साइकिल उठाई और उस भीगते इंसान के साथ चलदिआ। ... रास्ते भर यही सोचता रहा की क्या ये कोई षड्यंत्र  है या कोई खेल जो उसके साथ हो रहा हो पर हिम्मत बांधें चलता रहा। ..  रात तो थी ही ऊपर से खेतों में तो और डर रेहता है  रात में। ....कुछ दूर पर उसे कुछ दिखाई दिया कार कड़ी थी  टेढ़ी दरवाज़े खुले और कोई मदद  बुला रहा था वो दौड़ के गया तो एक आदमी दर्द में काररहार था संजीव ने एम्बुलेंस को फ़ोन किआ तो फ़ोन नहीं लग रहा था अब वो घबराने लगा देखा तो एक एम्बुलेंस आ रही थी उसे लगा किसी ने बुलाई होगी किसी ने 
एम्बुलेंस आई और लोग उतरे आदमी को बैठाया तो उसका बटुआ गिर गया उसे खोला तो इसमें चित्र था वो  चित्र तो देखा सा लग रहा था ध्यान से देखा तो उसे याद आया की ये आदमी तो  लाया है उसे यहाँ। ..ये सब समझते ही पीछे मुडा तप उसने देखा वो कहीं भी नहीं था वहां वो डर गया उसने एम्बुलेंस रुकवाई और उससे पूछा ये जो आपके बटुए  में चित्र है ये कौन है यही मुझे ले कर आए थे यहां 
आदमी- हॅंसकर की भाई ये कभी हो ही नहीं सकता ये तो पांच  साल पहले ही  मर चूका है ये मेरा दोस्त था 
संजीव डर गया और वापिस सीधे घर की  भागा ,,,, पुरे रास्ते वो खुद से उलझता रहा और डरता रहा। ...... 
घर जाते ही पानी पीने लगा की दरवाज़े पर फिर से थप थप हुई डरते डरते कब संजीव ने किवाड़ा खोला था तो एक आदमी भीगा हुआ खड़ा था और  संजीव के ध्यान देने पर उसने देखा की इस बार वही रोति आंखें वही मदद मांगने वाली बात वही रुक रुक के घबराना पर आदमी वो था जिसे वो भी एम्बुलेंस मेबैठालकर आया था। 

Friday, July 14, 2017

               Life is simple


Life is confusing becoz it have always got two options for everything ; consider it the way of choosing your life with living someone and without someone you can trip in both ways ,consider it choosing a professional future ;  again you got two choices, either live with the thought of being something valuable or just be the
"valuable ",again consider it happiness or pain there is again two choices therE is no in between of being less in pain or hapPiness
Pain is a pain and happiness is what it looks like , so giving a thought that you might not take a decision and how would you live in future , don't just only talk to your mind , talk to your core what your core is deciding for you coz in any situation you can live  with life, it  always have its own ways;  fear nothing  in this entire life ,people does several  work to convince them that they would have done a lot better but if that would have happen this situation you are on would have been not discovered by you , people out there reading this should really understand this that the work you do , name it work , party,  poetry , sports , shopping even romance you are the only one who chose this to be so live with the ultimate truth that life don't surprise.  You its you And your decisions who plays role so admire yourself and start loving everything about you because  each day you should remember that you wanted to for the old days
Life is simple admire it

Tuesday, July 4, 2017

                     अकड़ और  चतुराई
       


सात बजे की गाडी आज नौ बजे  करीब स्टेशन के दूर कोने से चली आ  रही थी लोग अपना अपना बक्सा  जो भी उनके पास था लिए दौड़ रहे थे पर इधर कन्हईया अपना सुबह का अखबार और चाय लिये राज काज समझ  रहा था की तभी पिताजी की फटकार ने सब मज़ा खराब कर दिया
पिताजी : कन्हैय्या तू जाता है मैं अपाहिज जाऊँ पैसे के लिए गाडी के अंदर पूरी सब्ज़ी बेचने
 कन्हैया : पिताजी आप क्यूँ गुस्सा करते हैं मैं ही जाता हूँ।
कन्हैया के पिताजी  युहीं स्टेशन में काम करते अपने पाऊं खो चुके अब कन्हैया १३  साल के होने के बाद भी ये काम करता है कन्हैया एक बहुत ही सुन्दर और मेहनती बच्चा है इस उम्र में अपने साथ साथ पिताजी को भी रोटी देता है

कन्हैया अपने सामान के साथ चल दिआ गाडी की और उसके लिए हर गाड़ी का रंग रूप सब एक जैसा था उसे न ही मतलब होता था की कौन सी गाडी कौन सा वक़्त  है बस घुस जाता था अपने सामान को बेचने की तभी उसके कानों में किसी की आवाज़ पड़ी की भोपाल के सबसे बड़े आदमी की सबसे मेहेंगा हीरा चोरी हुआ है ये सब सुनकर उसके  मन में बहुत से सवाल आने लगे पर रुकती गाडी  सब हटा दिए कन्हैया दौड़ते हुए गाडी में घुस गया आज बहुत भीड़ के कारन उसकी बिक्री बहुत हुई पर बोलते हैं न खुशियां ज़्यादा देर  मेहमान नहीं होती दरवाज़े से उतर ही  चार पांच लड़कों की भीड़ चढ़ी और कन्हैया को धक्का दिए और गाडी के अंदर आ गए
गुस्से में  कन्हैया लड़ पड़ा और बच्चा समझ उन्होंने उसे उठाया और ऊपर वाली जगह पर बैठा दिया कन्हैया  वाला था
ढीट बनकर वही बैठा रहा उसका लड़कपन देख कर लड़कों ने बात को गंभीर और बेइज़्ज़िति के रूप में लिया।
कन्हैया निडर होकर वही बैठा रहा
गाडी में कई लोग  थे जो ये सब देखकर खुश नहीं थे पर शायद वो और लड़के सब रोजाना साथ सफर करते थे सुर वो उन लड़कों से डरते भी थे
इन सब लोगों को देखकर कन्हैया की  उम्मीद भी नहीं लगा रहा था उसे एक आदमी दिखा जो बैठा तो वही था पर वहाँ ये सब देख रहा था ये ज़रा  कन्हैया के समझ के बहार था देखने में गोरा हाथ में कड़ा आँखों में चश्मा टोपी वगेरा सब था पर वो इधर होते हुए क्यों नहीं देख रहा अब कन्हैया को इन लड़कों से ज़्यादा उस आदमी में ध्यान लगा हुआ था की तभी एक  थप्पड़ ने सारे तारे हिला दिए थे गुस्सा चरम पर पहुंच गया उसका मुँह लाल होते देख लड़कों ने उसे उठाया और गाडी से बहार  कूदा दिआ
 आज दिन में इतना बुरा हुआ की अपने पिताजी को भी नहीं बताया कन्हैया नहीं तो खुद तकलीफ झेलने चले जाते पर कन्हैया को बचाएंगे इन सब से। ...... कन्हैया का गुस्सा शांत होने का नाम ही न ले पर आज उस गुस्से से ज़्यादा
उसके दिमाग में उस आदमी प्रति सवाल थे
कन्हैया खुद से : हो सकता है बहरा हो या अंधा पर उसने उसके कानों की हरकत देखि थी वो बहरा तो नहीं था अगर वो सिर्फ बहरा होता तो इधर उधर ज़रूर करता की क्या हो रहा है या कुछ

अगले दिन की सुबह कन्हैया के लिए बदला लेनी की थी पर उसने खुद को समय दिआ और खुद को ये विश्वास दिलाया की पहले उसके बारे में जानूंगा तभी बदला लूंगा और बदला तो कभी भी लेलूं
आज भी उसी डब्बे में  चढ़ा जिसमे कल था आज भी वही लड़के मिले और खेलते रहे कूदते रहे पर कन्हैया की नज़र सिर्फ
उस आदमी पर थी आज तो और यकीन हो गया जब कन्हैया ने उसे बार बार सपने बास्ते को खाकोलते देखा कल तक जो  बोल सुन नहीं पा रहा था आज वो बस्ता  देख रहा ये सब सही से पता चल था था की किसीने पीछे से पूरी उठाली उसमे झगड़ा जो गया लड़कों ने कन्हैया को बहुत पीट दिआ और बाहर धक्का दिए की कल से यहां दिख मत जाना वरना मार देंगे रोता रोता कन्हैया जाकर बिस्तर पर सो गया
आज सुबह से ही गुस्सा लिए कन्हैया स्टेशन पहुंचा आज कुछ  करके उन्हें समझाना था पर उसे कुछ  समझ ही नहीं आ रहा था गाडी आज फिर थोड़ी देर से आई कन्हैया लाल मुँह लेकर आज फिर हार सामना करने के लिए खुदको शांत कर लिआ घुसते ही उसे वो लड़के दिखने लगे तभी उसे दो पोलिसवाले वहीँ दिखाई दिए उन दोनों अफसरों को देखकर कन्हैया के दिमाग में एक ऐसी बात आई जिसने उसे फिर से शक्ति धारक बना दिआ
पूरी पूरी चिल्लाते हुए वो आगे बढ़ा की उसने लड़कों  को पासजसकर जानबूझकर उनके पैरों में चढ़ने लगा गुस्से में लड़कों ने उसे फिर ऊपर बैठा दिआ ये देखकर पोलिसवाले वहाँ आ गए बेहेस करते देख लड़के घबरा गए पर कन्हैया का शिकार तो कोई और ही था पुलिसवालों को कन्हैया ने इशारा किआ की मुझे लगता ही जो भी चोरी भोपाल में हुई  बड़ी उसके पीछे उस अंधे लड़के का है जो की सिर्फ यहां पर नाटक कर रहा और वो ये बात साबित  कर सकता है
उसके कहने पर तलाशी होने लगी आदमी जो अभी तक बोल नहीं रहा था अब वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा पोलिसवाले जैसे ही उसने तलाशी ली उस आदमी के पास हीरा और बी बरामदी सामान मिला।
गाडी रुकवा कर उसे ले जाया जा रहा था की कन्हैया के दिमाग में बदले की आग जाली और उसने पुलिसवालो को बोल दिआ की ये अकेला नहीं हैं कुछ लड़के भी जो इसको मदद करते हैं , पर नहीं पता था की उन लड़किन के पास भी चोरी का सामान था  ये सब तलाशी के बाद उन लड़कों को चखाया  उसे ये भी नहीं पता था की उन सारे लड़कों को चोरी चाकरी  ही काम  और धाम है
कन्हैया ने एक तीर से दो निशाने करते हुए  फसा दिए
शहर के बड़े से आदमी ने जिसने इतना कीमती हिरा मिला हो उसने लाल चौक पर कन्हैया के लिए दूकान खोली जहाँ अब कन्हिया कुर्सी  पर बैठकर सिर्फ आवाज़ लगता है और सारा काम खुद संभालता है

Monday, April 24, 2017



                सबसे बड़ी ताकत



टूटी छत  के टपकते पानी से अपने लाल को बचाया है
ठण्ड न लग जाए कहीं उसे तो खुद को भिगाया है
डूब रही हो कितनी  ख्वाइशें  लाल की
 हर बार  हाथ लगा कर उसने डूबने से बचाया है
 मुड़ कर  देखो जिस भी पल की ओर
उस लाल  की माँ ने हमेशा गले से ही लगाया है

हस्ते खेलते वो साथ  बड़े होते हैं
कुछ  खट्टे  मीठे पल उनके  साथ बुनते हैं
दिल में प्यार से भी ज़्यादा जगह बनाती हैं
कोई भी  रिश्ता  नहीं जीतता जब दो बहनें साथ निभाती हैं


परीवार को उसने बनाया है
जीना सिर्फ उसने ही सिखाया है
कंधे पर रखकर हमको उसने
दुनिया  का रंग दिखाया है
हाथ में उसके छाले थे और घर पर अनाज के लाले थे
पर तोड़ कर अपनी रोटी  का टुकड़ा हर बार हमको खिलाया है
आँख में उसके आंसूं हैं पर हमको वो मालूम नहीं क्यूंकि
उसने हमारे हर सपने को अपनी आंखों  सजाया है
चाहे कितने ही हो दुश्मन दुनिया में मगर सबसे
ताक़तवर भगवान ने पिता को बनाया है




Sunday, April 16, 2017

                     खुद की ताक़त


छोड़ दिआ है खुदको की जा उड़
बोल दिआ रस्ते से की अब कहीं भी तू मुड़
खोल के नज़रें ऊपर दिशा  की तरफ हैं लगाई
की जो दृश्य है खुले आसमान का उनसे मेरी उमीदें रहीं है जुड़

बिछा के अरमानों की चादर मैंने उम्मीद में बढ़ना सीखा है
लाख हो ऊँचा पहाड़ उसपर चढ़ना सीखा है
टूट तो रहे थे सारे किले मेरे सपनो के मगर
उसी रेत के किले को फिर से खड़ा करना सीखा है

हाथों में बनी लकीर को पढ़ने से कुछ हासिल नहीं होता
बनी बनाई  दुनिया की रीतों में रहने से कुछ नहीं होता
जो रेस में जीतते है वो तो बस महज़ दुनिया के सामने होते हैं पर
पर जो रोज़ गिर कर चलतें हैं उनसे ज़्यादा कोई काबिल नहीं होता

सामना करते करते लड़ने लगता है हर कोई
अपनी हार देखकर खुद से झगड़ने लगता है हर कोई
डर होता ही इसलिए है हमारे लिए
की सामना होते ही टूटी डोर पकड़ने लगता है हर कोई 

Friday, February 10, 2017

                                               दिवाकर और नीलम

सुबह के सात बज रहे थे।

नीलम :पिताजी जल्दी क्यूँ चला रहे हैं साइकिल ,अपनी बेटी को भगाने का बड़ा शौक है , एक दिन जब चली जाऊँगी तब पता चलेगा फिर रोते रहना मेरे लिए......
पिताजी: अरे नहीं नहीं नीलम तुम्हारी गाढ़ी नहीं छुटनी चाहिए आखिरकार पुरे गांव से अकेली लड़की हो जो शहर जाकर नौकरी कर रही हो ,,तुम्हे पता भी नहीं है की कितना गर्व महसूस करता हूँ तुम्हे अपनी बेटी बोलकर। ...
नीलम:हाँ हाँ बस करिये मुझे पता है मक्खन लगा रहे ,मुझे याद है आपके लिए रेडियो लाना है नया कल भारत और वेस्ट इंडीज का मैच है फाइनल ,,:)
पिताजी: अरे नहीं नहीं बेटा ये दिल से बोल रहा और मैं तो भूल भी गया था की वो भी तो लाना है तुझे ,चल आछा है याद है तुझे वरना मैँ तो भूल ही जाता हूँ सब कुछ ,

सन १९८३
गाडी प्लेटफार्म पर आ ही गई थी नीलम जल्दी से चढ़ गई।
नीलम: पिताजी फुलवारी को खाना देदीजिएगा याद से। (फुलवारी उनकी गाय थी )
पिताजी: अरे हाँ हाँ तू बस अपना ख़याल रखना यहाँ की चिंता मत कर

ये बातें रोज़ की थी जब तक गाडी प्लेटफार्म से निकल नही जाती। ..गाडी जा चुकी थी नीलम के रोज़ की तरह अपने पिताजी से दूर होने के ग़म में बहते ही थे हालाँकि ये कुछ समय के लिए ही दूर रहते थे पर माँ के गुज़र जाने के बाद से उसने ही अपने पिताजी का ख्याल रखा था।

गाड़ी  हमेशा की तरह भरी हुई थी। रोज़ नीलम खड़े होकर ही जाती थी। पर आज एक अलग बात ने उसे चौंका दिया ,एक लड़के की आवाज़ ने उसे हिला दिया।
दीवाकर : जी आप मेरी जगह पर बैठ जाइए मैं खड़ा हो जाता हूँ।
नीलम को किसी ने ऐसे नहीं पूछा था ,नीलम वहां बैठ तो गई पर वो समझ रही थी की हो सकता है वो लड़का उसके पीछे पड़ा हो तभी उसका दिल जीतने के लिए कर रहा। नीलम खिड़की के बहार देखने लग गई पर उसके दिमाग में उसके पिताजी की कही बातें कभी उतरती नहीं थी सावधानी उसके लिए बहुत ज़रूरी था। धीरे से उसने अपना बस्ता ज़मीन में गिराया और बहाने से उसने उस लड़के को देखा की कहीं वो उसे ही तो नहीं घूर रहा।


नज़र ऊपर की ही थी की उसके लिए सब बदल गया। वो लड़का दरवाज़े की तरफ खड़ा था, हवा से उसके बाल उड़ रहे थे ,रंग में गोरा ,अच्छा कद था उसका। वो लड़का दरवाज़े के बाहर देख रहा था। नीलम की नज़रें उससे हट ही नहीं रही थी ,

नीलम:(खुदसे ) ये क्या कर रही है नीलम कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा ,अपनी नज़र हटा वहाँ  से वरना लोगों को क्या लगेगा।

पर अब प्यार तो प्यार है जो आज नीलम को कैद कर रहा था। नज़रें खिड़की पर कम और दरवाज़े पर ज़्यादा थी। ....
उस लड़के की तरफ देख रही थी की वो घूम के खड़ा हुआ और उसने देखा की नीलम के सामने वाली जगह खली है ,वो आया और आराम से बैठ गया ,उसके बैठते ही नीलम को समझ नहीं आ रहा था की कैसे वो अपने आपको संभाले
अब तिरछी निगाहों से देखने लगी। उस लड़के ने गर्दन टेढ़ी करि खिड़की के सहारे रखी  और सो गया।

नीलम : नीलम बेटा देखले अब जी भर के खिड़की के बहार से थोड़ी आएगा कोई तुझे पकड़ने की क्यूं देख रही (और ये सोच क्र हँसने लगी नीलम )

लड़का अचानक उठा और चल दिया ,,नीलम की खुशियों को नज़र लग गई थी वो अपने आपको हिम्मत नहीं दे पा रही थी की कैसे भी उसे बोल्ड की कल भी आना मिलने ,लेकिन जा चुका था

शाम को शहर से लौट ते वक़्त भी वो यही सोच रही थी की आज उसने सब कुछ खो दिया पहली बार पिताजी के इलावा किसी के जाने पर दुःख हो रहा था। .निगाहें ढूंढती रही पर वो लड़का नहीं आया तो नहीं आया।

 रात के वक़्त

पिताजी : बेटा कल तो छुट्टी होगी।
नीलम :(धीमी आवाज़ में ) क्यूँ कल क्या है ?
पिताजी: कल पहली बार भारत का फाइनल है।
 नीलम :नहीं जी मेरी कोई छुट्टी नहीं है (गुस्से में )
पिताजी: ठीक है गुस्सा क्यूँ कर रही चली जाना।


सुबह सात बजे

नीलम: पिताजी जल्दी जल्दी चलाइए गाडी छूट जाएगी (नीलम गाडी नहीं छोड़ना चाहती थी क्यूंकि इसी समय वाली में वो लड़का मिला था )
पिताजी: अरे क्या हो गया है तुझे कल से देख रहा हूँ आज तक तो रोज़ सुनाती थी पर आज तो देखो ज़रा, बिलकुल अपनी माँ पर गई है कभी समझ नहीं आता क्या करूँ।


नीलम गाडी में घुसी और किसी पुलिस वाले की तरह निगरानी करने लगी पर कुछ हाथ नहीं लगा हताश नीलम बैठ गई खिड़की की तरफ। कुछ दूर जाने पर उसने देखा बहार सड़क की तरफ वही लड़का साइकिल पर बैठा जा रहा था ,,खुश तो बहुत हुई पर नीलम को अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था की कल सामने था तो बोल नहीं पाई आज बोलना चाहती हूँ तो वो पास नहीं और अब गाडी उससे कई दूर जा चुकी थी।

नीलम:(अपने आप से ) नीलम तू एक काम कर ये गांव भी तो तुम्हारे गांव से तेन गांव दूर है कल एक काम कर छुट्टी ले और साइकिल से आकर इससे मिल। और हाँ चिट्ठी में लिखेगी या सीधे बोलेगी।
नीलम ने सुना तो था की उसके कई दोस्त है जिनको कई लड़कों ने बोला था पर कभी उसने ये नहीं सुना था की किसी लड़के ने अपने आपसे ऐसा कुछ किआ करो पर हिम्मती लड़की थी खत ही लिखलिया


अगले दिन

नीलम: पिताजी आज मेरी छुट्टी है रुपाली के घर जा रही हूँ ।

और साइकिल उठाई हालाँकि पिताजी के अलावा साइकिल से कहीं नहीं गई थी पर हिम्मती तो थी और ऊपर से प्यार की ताकत और खींच रही थी। चल पड़ी वो उस गांव की तरफ रस्ते भर सोचते सोचते वो न जाने कब उस गांव पहुँच गई। ......काफी मेहनत के बाद वो वहां पहुँच गई पर अभी भी उसे पता नहीं था की उस लड़के को ढूंढेगी कहा से।
तीन चार घंटे वहीँ कड़ी रही पर वो नहीं आया ,

नीलम :(रोते हुए अपने आप से ) नीलम तेरी किस्मत में ही नहीं है ये मिलना चल तू वापिस चल अचे लोगों के साथ कभी एच नहीं होता।

नीलम पलटी और वापिस चल दी। वापिस जाते हुए उसने फिर वही आवाज़ सुनी
दीवाकर : जिससे मिलने आई हो उससे मिलकर नहीं जाओगी।
नीलम : किस से मिलने आई हूँ क्या बोल रहे हो।

दीवाकर ने उसके हाथ में कुछ देखा और छीन लिया ,खत पढ़ते ही उसके आंसू आ गए.दिवाकर एक किसान था और अकेला भी उसके माता पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। और उसके लिए इतना किसी ने नहीं किआ था। दिवाकर ने हाथ नीलम की तरफ बढ़ाया और उसे अपनी बाँहों में भर लिआ। नीलम की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था

नीलम: दिवाकर तुम्हे मेरे पिताजी के साथ रहना होगा चलेगा।
दिवाकर के चेहरे पर सिर्फ मुस्कान थी।

सुबह
आज फिर गाड़ी आवाज़ दे रही थी और प्लेटफार्म से निकलने वाली थी नीलम आज भी साइकिल चलाने वाले पर चिल्ला रही थी की देर करदी अर आज साइकिल दिवाकर चला रहा था।


समाप्त 

Monday, December 5, 2016



                                         The decision :-

The 'day' I remember is the 'day' I  want to forget,,
The mistake , the fault : is the thing I regret,,
open sky is the only evidence who understood me ,,,
I had no such intentions but never knew coz of this I have to lude me.....

Today i shed into tears that are mixed in the shower I had,,,
Today I saw in the mirror and can't have the look I had,,,
Mistake that I did ,is after all  mistake ,
I know it is my decision in the end that I take,
The day was important that i wasted,
So many with much expectations were believing me,
WHAT i did only let them down.....

If right decision is made players are praised,
If I predicted the movement of ball right , players are praised,
But if sometimes predictions went wrong why I am always criticised ,
Due to my human nature sometimes
 If I listened to my i heart why I am always criticised...


The final match of the the tournament was lost by the deserving team,
due to the decision i took turned out not into sapphire,
yes u guessed it right I am that 
SO called 'umpire'...................

Monday, November 28, 2016

                        The voice
Yes! I have that darkness to grow
I live under the wings of that crow
The love ,the lust burnt to the ground
Good natured people are those whom I frown

The eyes that stares me are only mine
No such factors I promote for my shine
Flow of my river causes leaves to curl
The stones,the plants in way are torned


The hood I carry hides the truth
The look I wear hides the truth
Blinking of my eyes tells the truth
All into this swirl I am only the truth

Monday, November 21, 2016


                     You ❤️️


The way you see, The way look.
Only the reason for my heart you took.
The way you smile ,the way you laugh
Can pull me all the way and can make me your half.
The way you touch ,the way you hold
Gives me the idea ,let's grow together old .


All my heart belongs to you
Can't say but yes I love you
Watching others couple makes me void
You always fill that space standing by my side



I see :you have that smile always
I see:you have that cuteness always
I see you have love in your eyes always
I see : yes I see you always ♥️

Saturday, November 19, 2016

अखबार में आज फिर किसी हिंदुस्तानी के घर की तबाही के बारे में छपा है और उसे पढ़ कर संतोष कुमार का खून खौल उठा था। सुबह की चाय भी जैसे फीकी पढ़ गई थी ,,,संतोष ने अपना चश्मा मेज़ पर रखा और बहुत ही क्रोधित आवाज़ में अपने बेटे रूपविजय को आवाज़ दी। रूपविजय जो की पढाई करके अंग्रेजों की सेना में एक पुलिसवाला था जो की अपना काम बड़ी ही ईमानदारी और लगन से करता था ,,उसे इंसान के पहले कानून समझ आता था। रूपविजय बहुत ही सख्त और कठोर किस्म का लड़का था ,,,उसकी शादी तय ही हुई थी पर क्रांति के होर शोर में उसके इस पद की वजह से कोई भी हिंदुस्तानी बाप अपनी बेटी का हाथ उसे नहीं देना चाहता था। इस बात पर रूपविजय और भी गुस्से में रहता था ,,,संतोष का बेटा  उसकी बिलकुल भी नहीं सुनता था ,,नौकरी को लेकर इतना सख्त था की कई बार तो घर के बेटों को भी कारागार के पीछे ले जा चुका था।


रूपविजय : हाँ पिताजी कहिये क्यूँ गला  फाड़ रहे हैं।

संतोष:ये तुम और तुम्हारी सरकार क्या करके मानेगी ,,कल फिर दो लोगों के घर जला दिए।

रूपविजय :पिताजी ये आप बहुत अच्छे से जानते हैं की हमारी सरकार कभी कोई गलत फैसले नहीं करती ,,ज़रूर कोई ऊंच नीच की होगी उन लोगों ने।

संतोष: अरे तुम लोग क्या जानोगे क्रांति ,,वो खून जो लोग अपने देश के लिए बहा रहे हैं ,,तुम कभी नहीं समझोगे ये बात ,,और देख लेना जिस दिन मैं मरकर चला जाऊंगा तुम खुद समझ जाओगे।

रूपविजय : हाँ पिताजी देखा जाएगा अभी मुझे जाने दो ,,नमस्ते।

संतोष एक वृद्ध था पर  उसमे होंसला और लड़ने का दम बहुत था। संतोष का बचपन भी अँगरेज़ की वजह से ही बर्बाद हुआ था ,,भरे गांव के सामने उसके घरवालों को मार डाला था ,,उसमे आज भी उनके खिलाफ बहुत आग थी ,,संतोष भले ही जूते पोलिश करकर गुज़ारा करता था क्यूंकि उसे रूपविजय का एक भी पैसे गवारा नहीं था ,,,संतोष पर एक क्रन्तिकारी भी था उसके आस  पास जो भी घटना होती थी उसके पास हर खबर थी।

शाम के करीब पांच बजे थे संतोष अपनी दूकान हटा रहा था की एक खून से लपटे कपड़ों में एक नौजवान गिरता पड़ता आया ,,,



मुझे बचा लो,, ये लोग मेरी जान लेलेंगे। मैं  अपने भारत को आज़ाद देख ही मरना चाहता हूँ मुझे बचा लो।

जितने में संतोष कुछ समझ पता या कुछ के पाता एक गाडी रुकी और तीन या चार सिपाही उतरे उसे गोली मारी  और उसे उठा ले गए ,,ये सब संतोष की आँखों के सामने ही हो रहा था जैसे कोई बहुत भयानक सपना देख रहा हो संतोष अपनी आँखों पर विशवास नहीं कर पा रहा था। आस पास भीड़ इखट्टा हो गई किसी ने संतोष को किसी तरह उसे घर पहुँचाया ,,घर जाते ही संतोष बिस्तर पर चला गया वहां जाने पर उसे कुछ होश आया और उसके आँखों से आंसू रुक नहीं रहे थे। उसे आज पता चला था की ज़िन्दगी की कीमत कितनी सस्ती है हिंदुस्तान में अंग्रेजों के लिए। क्रोध बढ़ता  ही जा रहा था संतोष का उसके सामने से उस नवजवान का चेहरा नहीं हट रहा था। आज संतोष ने कुछ फैसला कर  लिए था ,,


सुबह होते ही संतोष ने अपना बस्ता लिए और निकल गए घर से।

रूपविजय:अरे पिताजी कहा चले गए आज मुझे या मेरी सरकार को कुछ कहोगे नही। .
नौकरानी : साहब आज वो सुबह ही कहीं निकल गए।

रूपविजय को बहुत आस्चर्य हुआ पर उसने ज़्यादा ध्यान नही दिया। .

चार महीने बाद। ........


रूपविजय :पिताजी आप काफी बदले बदले से दीखते हैं आज कल क्या बात है आपको भी हमारी सरकार से प्यार हो गया क्या?
संतोष :(बड़े ही धीरे आवाज़ में ) बेटा या तो तेरी सरकार रहेगी या मैं।
रूपविजय: मैं कुछ समझा नहीं पिताजी ,पर हाँ सरकार तो रहेगी ,,,(मज़ाक करते हुए )
संतोष  इस बार कुछ बोला नहीं बस रूपविजय को देखकर मुस्कराता रहा ,,रूपविजय चला गया अपने काम पर वैसे ही पीछे के रास्ते से कई लोग घर पर घुसने लगे ,,उसमे से एक थे जो अंग्रेजों के लिए सबसी बड़ी चुनौती थे ,,,तीन चार लड़के और बाकि दो आदमी थे ,,,घर के सबसे छोटे से कमरे में जाकर  बात करने लगे ,,अगर दरवाज़े के कान होते तो वो पक्का अंग्रेजों को चुगली करदेता की वहां क्रांति की बात चल ही थी ,,संतोष अब पूरा क्रन्तिकारी हो गया था उस घटना के बाद संतोष के अंदर आज़ादी की हवा चढ़ गई थी ,,,

रविवार को सब ही आराम कर रहे होते हैं। .वैसा ही हाल कुछ पुलिस स्टेशन में भी था सब नींद में थी की अचानक से खबर आई की किसीने लाल चौराहे पर खून कर दिया और खून भी तो अंग्रेजों के सबसे ऊँचे पद वाले का और खुनी वह मोर्चा कर रहा है खुनी भी वही था शायद जो फरार था और उसपर अंग्रेजों ने इनाम रखा था ,,रूपविजय ने अपनी पिस्तौल उठाई और  आँखों में गुस्सा लिए लाल चौक के लिए निकल गया ,,


वहां पहुंच कर उसने देखा की वहां  काफी भीड़ है  और नारेबाजी हो रही है,, गुस्सा और भी तेज़ हो गया उसने अपनी पिस्तौल हवा में फायर करदी ,इतने में भीड़ भागने  लगी पर,, वहां बैठा शख्स  बिलकुल नही हिला ,,खुदसे न डरते हुए देख रूपविजय को और गुस्सा आया और उसने आओ देखा न ताओ गोली चला दी  ,,उसको लगी जाकर ,,,सब शांत हो गया आस पास ,,सब भाग गए ,,कम्बल हटाया रूपविजस्य ने तो देखा उसका बाप संतोष खून में लिपटा वह मौत के दरवाज़े पर खड़ा था ,,,ये द्रष्य देख देखकर रूपविजय की धरती मानो हिल गई हो आज उसकी नौकरी इतनी खुद्दार थी क्या जो उसने अपने बाप को अपन हाथ से गोली मार दी ,,उसे ज़रा सा भी अंदाज़ नही था की ये उसके हाथों से क्या हो गया था ,,,


संतोष:बेटा इधर आ मेरे पास।

रूपविजय:ये क्या कर रहे थे आप ,,ये क्या हो गया मेरे हाथों। ...

 संतोष :अब समझे की मैं  क्या कहता था किसी को भी लगे गोली वो भी किसी का बाप होता था पर तुमने कभी खबर नहीं थी की क्या दर्द था भारत म। ..पर अब तुम जब अपने खुदके बाप को मार पा रहे हो तब समझ आ रहा तुझे ,,अब बस इतना वादा कर की तू आज से भारत की सेवा करेगा और भारत को आज़ाद करवाने में मेरा सपना पूरा करेगा।

संतोष ने आखरी दम अपने बेटे के पास हो तोड़ दिए ,,ये सब रूपविजय को सम्भाल नहीं पाए ,,,रोरोरकर रूपविजय अपनी कम्मज उत्तर रहा था और पैदल पैदल चलने लगा उसके दिमाग में वो सरे पल आने लगे जो उसने अपने पिताजी के साथ बिताए थे ,,,रस्ते में उसे लार्ड मिले जो इंग्लैंड से कुछ ही दिन पहले आए थे ,,,संतोह की बात उसके दिमाग में बवंडर बना रहे थे। .पिस्तौल उठाई और छह की छह गोलियां उसने लार्ड के सीने पर उतार दी और हर गोली के बाद यही चिल्ला रहा था कि



संतोष ज़िंदाबाद भारत ज़िंदाबाद ,,,,,,

Friday, September 23, 2016

घड़ी देख देख कर आज जय का समय नहीं कट रहा था। आज गर्मियों की छुट्टी का आखिरी दिन था कल से फिर वही स्कूल के चक्कर लगाने थे इस चीज़ का दुःख नहीं था दुःख था तो इस चीज़ का की आज सामने घर आई हुई प्रियंका आज अपने घर जा रही थी ,,,,प्रियंका जो हर गर्मियों की छुट्टियों में अपनी नानी के घर आती थी ,,,प्रियंका हर साल जय को दिखती थी पर इन छुट्टियों में जय को बहुत अलग एहसास हुआ था जब भी वो अपने छज्जे पर आती थी पर उसने कभी जय को देखा नहीं था ,,,हमेशा लड़कियों के  साथ रहती थी जय ने कई बार चाहा की वो कुछ तो बात करे पर हर बार प्रियंका भाव खाकर चली जाती ,,,,,
नौ बज गया था आज तो वो कसरत करने भी नहीं आई पर माँ ज़रूर आ गई ,,,
माँ : जय जाकर ज़रा मट्ठे के दो पैकेट ले आ तेरे पापा को देर हो रही ,
जय : माँ पापा से बोल दो आज दफ्तर में ही नाश्ता करलें।,,, मैं कहीं नहीं जा रहा।
माँ:थप्पड़ खाएगा चल जा सीधे सीधे ,,,
जय:हमेशा माँ मुझे ही झेलना पड़ता है लाओ पैसे दो दूकान वाला  मामा नहीं लगता ,,,,

गुस्से में जय घर से निकला ,,,बड़बड़ाता हुआ जैसे ही सड़क पर करते ही उसने देखा प्रियंका हाथ में थैला लिए दूकान की तरफ जा रही थी ,,,उसको देखते ही जय की रफ़्तार बाद गई सांसें तेज़ और नज़रें सिर्फ प्रियंका पर थी ,,,आज तो बोल ही देगा सोचते सोचते जय पास पहुँच गया ,,,प्रियंका ने जय को देखकर मुस्कराई ,,इन सब में जय का दिल फिसल रहा था बस और उसकी मुस्कान ने उसे घायल और कर दिया था ,,,,,जय की आवाज़ नहीं  निकल रही थी तब तक प्रियंका बोली
प्रियंका :कल से तो स्कूल होगा ?
जय :हां पर क्या फायदा ,,,
प्रियंका : क्यूँ ?
जय: इसी वजह से ही तो तू जा रही ,,,
प्रियंका : हाँ तो ?


जय शांति से प्रियंका को देख रहा था प्रियंका को समझ आ तो गया था पर भाव खाकर बाल झटक क्र चली गई ,,
जय ये सब देखता रहा ,,,अब जय से रहा नहीं जा रहा था ,,उसने मन बना लिए था की आज वो प्रियंका को अपने दिल की बात बता देगा ,,,,दौड़ता हुआ घर गया सामान घर पर रखा और तैयार हो गया कुछ तोहफा लेकर जाने वाला था ,,,,अब था तो लड़का ही दूकान में खड़ा हुआ तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या पसंद है प्रियंका की कुछ भी तो नहीं पता था उसके लिए प्रियंका तो अजनबी थी की तभी दूकान में कोई चिल्लाया
दूकानदार : दो समोसे ले आना ,,,,,

समोसे अरे हाँ प्रियंका को चौबे के समोसे बहुत पसंद हैं यही सही रहेगा ,,,दूकान पहुंचा आठ समोसे लिए और उसमे एक खत रखा और चल दिया प्रियंका के घर की तरफ ,,,रास्ते भर उसकी और उसके दिमाग की लड़ाई होती रही की ये सही है या गलत ,,,पर आज दिल बहुत ही  से हावी था ,,जीत गया कम्भक्त ,,,जय प्रियंका के दरवाज़े के सामने खड़े खड़े सोच  की अगर नानी ने दरवजा खोल तो कोई बहन बना देगा पर तभी दरवाज़ा खुला और पैइयाँक उसको देखकर चौंक गई


प्रियंका: क्या हुआ जय कुछ काम था ,,,
जय कुछ भी बोल नहीं पाया उसका पहला प्यार उससे कुछ पूछ रही थी पर वो घबरा गया और समोसे वाला पैकेट उसे थमाया और ज़ोर  की तरफ भाग गया ,,,प्रियंका ने टैकल खोला तो समोसे थे ,,,प्रियंका बहुत खुश हो गई आज सुबह ही नानी से बोल ही रही थी नानी खिला दो फिर तो अगले साल ही खा पाएगी वो ,,,,,
अंदर देखा तो एक खत था ,,,



प्रियंका मैं तुमसे ये बोलना चाहता हूँ की मैं तुम्हे हर सुबह देखता था और हर दिन तुमसे प्यार  बढ़ता ही जा रहा है,,,आज तू चली जाएगी अब शायद हम एक साल बाद ही मिल पाएंगे पर मैं  चाहता हूँ की एक दिन तुम मेरे साथ रहो मैं तुम्हे जानना चाहता हूँ ,,,मैं चाहता हूँ की जब तक तुम  आओ अगले साल मैं तुम्हरा किसी उम्मीद में इंतज़ार कर  सकूँ ,,,और अपने बारे में बताना चाहता चाहता हूँ ,,तुम बस एक दिन अपन मुझे दे दो ,,,मैं उम्मीद करूँगा की तू ज़रूर कुछ जवाब देगी ,,,मैं  इंतज़ार करूँगा ,,,

आज दूसरा दिन था पर प्रियंका ने कोई जवाब नहीं दिया था ,,जय ने ना मान ली थी ,,और हारने  के बाद जैसे चेहरा उतर जाता  है आज था ,,,छज्जे पर बैठा रहा ग्यारह बज गया आज बहना  बना दिया की तबियत खराब है जय स्कूल भी नहीं  गया ,,,
माँ:पुरे दिन यहीं बैठा रहेगा की कुछ करेगा जा मुँह  भी उतार रखा  है जा दूकान से मंजन ले आ।
 
बिना कुछ बोले जय ने थैला लिया और चला गया ,,,सड़क पर  था आज भी वही थैला देखा उसे लगा प्रियंका है पर ऊपर देखा तो उसकी नानी दूकान पर  थी ,,ये देख कर तो जैसे जय के आंसूं  ही आ गए ,,,नीचे नज़रे किए दूकान पर सामान लेने लगा ,,,
नानी:और जय बेटा कैसे हो ,,
जय :(दुखी मन से ) अच्छा हूँ ,,,,
नानी :बेटा  एक काम करदेगा मुझे काम से जाना है अपनी बेहेन के यहाँ और यहाँ प्रियंका के पेट में दर्द हो गया है आज उसे जाना था पर रुक गई जाकर उसे ये दवा दे आ और हाँ ये थैला भी पकड़ा देना ,,,

इस वाक्य ने जय के होश उड़ा दिए थे ,,,जय को पता चल गया था की प्रियंका ने बहाना मारा है ,,,ख़ुशी के मारे जय का बुरा हाल था दौड़ते हुए गया ,,,


जैसे ही प्रियंका ने दरवाज़ा खोला जय ने उसे कसकर गले से लगा लिया ,,

जय: प्रियंका मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।


समाप्त।


Wednesday, September 14, 2016

                                                                            हम 


नैनों के इशारे ही दिखाई देते हैं,,,,
दिलों पर दस्तक ही सुनाई देते हैं,,,,
प्यार हसीं तो बहुत  होता है मगर ,,
हमारे किए गए फैसले ही हमे जुदाई देते हैं।

रूह की सच्चाई को किसने छुआ है ,,,
सच्चा प्यार किसको हुआ है,,,,,
अपने लिए ही करते हैं जो हमेशा ,,,
मिलती कहाँ  है उन्हें जन्नत ,,
 उनके लिए तो बस  वो एक दुआ है।

भीगा गई जो बारिश वो याद है ,,,
तेरी मुस्कराहट ही  फरियाद है ,,,
गिला क्यूँ करते लोग एक दूसरे से ,,,
जब इस दुनिया में हर रूह आज़ाद है।


आशिक़ को उसकी मोहब्बत मिलती है तो उसे है सुकून होता है ,,,
हर पहले प्यार करने वाले के रगों में जूनून होता है ,,,,,
बढ़ा चढ़ा कर बोल ले लोग इस समाज के  कितना ही  ,,,
अगर उसके घर में कोई प्यार करने वाला हो तो उसका सिर्फ खून होता है।




Saturday, September 10, 2016


                                                                        TUM

Barish to hai par kuch naya hai...
lagta hai koi mujhe mil gya hai...
ab  kuch to wapis mil rha hai...
Kuch to hai jo ab khil rha hai....
Toot gae the jo dhaage kahin par ...
unhe ab koi to hai jo sil rha hai...


Barish to hai par kuch naya hai...
lagta hai koi mujhe mil gya hai...
Nanv ko wapis kinara to mila hai...
naa jane kyu mujhe ab pata chala hai..
Bahut pyar se jisne mujhe thame rkha hai...
Uska pta aankh kholne k baad pata chala hai...
rooth gae the jo mausam humse ...
ab jakar unhe mera pata mila hai...

Darr ab kum lgta hai mujko...
meri har baat ka pata hai tujhko..
In aadaton ke jaan jane ke ....
baad bhi farak padata hai kisko...
Tere har dastak ki aahat sunai de rhi hai...
ye hawa tere hone ki badhai de rhi hai


Pata hai mujhe ki tu naya hai ..
aur tu hi to hai jo mjhe mil gaya hai....