Tuesday, September 5, 2017


                               
                              अन्जान 

संजीव गांव से दूर खेतों के पास में दो मंज़िलो के मकान में  रहता था , घर में कोई नहीं पर सामान सारा था टीवी फ्रिज वगेरा अरे  गांव में तो ये भी खबर थी की  चाँदी का भण्डार था उसके घर में इसी वजह से संजीव किसी पर भी भरोसा नहीं  करता था 
रात होते ही ताला किवाड़े पर न कोई चोरी कर ले जाए। .. संजीव बहुत ही हिम्मती और चतुर था। ..रात में किसी के लिए किवाड़े खुलते। .संजीव हमेशा सबसे बोलता  मैं मेरे चाँदि के सिवा कुछ भी नहीं। .. 
हर रात की तरह ताला लगा ही रहा था की दरवाज़े पर कुछ थप  थप हुई गुस्सा आया चुप चाप वह खड़ा हो गया की कोई होगा तो खुद चला जाएगा पर दो मिनट बात तक थप थप हुई  संजीव को शक हुआ की इतनी  रात में नहीं आता अब उसने खिड़की के परदे से झाका तो बारिश में कुछ दिखा नहीं बस एक आदमी सा दिखाई दिआ खुद से बोला क्या ही  काम होगा देखते हैं। 
दरवाज़ा खोला तो एक सूट में आदमी खड़ा था सर पर बाल नहीं आँखों में पानी और बारिश में भीगा हुआ हाथ जोड़े था। ..घबराते हुए आदमी बोला 
आदमी -भ भ  भ भाई मदद की ज़रूरत है चलिए  वहां एक गाडी है जहां मेरा दोस्त फसा हुआ है आप चलकर कुछ  करदिजिए।  
संजीव -  घबराइए मत ! पानी लाता हूँ फिर देखते  हैं 
किचन में जाते ही संजीव खुद ही झूझने लगा की क्या ये कोई चोर है या कोई डकैत ऐसे कोई तो गड़बड़ है संजीव हिम्मती तो था ही अपनी रिवॉल्वर निकली रखी अपने पास और गिलास में पानी लेकर आया साथ में मेज़ में पिस्तौल भी रखी अब उसे लगा की चोर होगा तो डर जाएगा और चला जाएगा। पर वो पानी पिते ही फिर रोने सा लगा की जल्दी करिऐ  वरना वो मर जाएगा 
शक के बादल को लेकर साथ चलदिआ  साइकिल उठाई और उस भीगते इंसान के साथ चलदिआ। ... रास्ते भर यही सोचता रहा की क्या ये कोई षड्यंत्र  है या कोई खेल जो उसके साथ हो रहा हो पर हिम्मत बांधें चलता रहा। ..  रात तो थी ही ऊपर से खेतों में तो और डर रेहता है  रात में। ....कुछ दूर पर उसे कुछ दिखाई दिया कार कड़ी थी  टेढ़ी दरवाज़े खुले और कोई मदद  बुला रहा था वो दौड़ के गया तो एक आदमी दर्द में काररहार था संजीव ने एम्बुलेंस को फ़ोन किआ तो फ़ोन नहीं लग रहा था अब वो घबराने लगा देखा तो एक एम्बुलेंस आ रही थी उसे लगा किसी ने बुलाई होगी किसी ने 
एम्बुलेंस आई और लोग उतरे आदमी को बैठाया तो उसका बटुआ गिर गया उसे खोला तो इसमें चित्र था वो  चित्र तो देखा सा लग रहा था ध्यान से देखा तो उसे याद आया की ये आदमी तो  लाया है उसे यहाँ। ..ये सब समझते ही पीछे मुडा तप उसने देखा वो कहीं भी नहीं था वहां वो डर गया उसने एम्बुलेंस रुकवाई और उससे पूछा ये जो आपके बटुए  में चित्र है ये कौन है यही मुझे ले कर आए थे यहां 
आदमी- हॅंसकर की भाई ये कभी हो ही नहीं सकता ये तो पांच  साल पहले ही  मर चूका है ये मेरा दोस्त था 
संजीव डर गया और वापिस सीधे घर की  भागा ,,,, पुरे रास्ते वो खुद से उलझता रहा और डरता रहा। ...... 
घर जाते ही पानी पीने लगा की दरवाज़े पर फिर से थप थप हुई डरते डरते कब संजीव ने किवाड़ा खोला था तो एक आदमी भीगा हुआ खड़ा था और  संजीव के ध्यान देने पर उसने देखा की इस बार वही रोति आंखें वही मदद मांगने वाली बात वही रुक रुक के घबराना पर आदमी वो था जिसे वो भी एम्बुलेंस मेबैठालकर आया था।