Monday, August 29, 2016

                      My smile

You took my smile away 
When you left me a while ago..... 
My heart throbs for ur essence
My soul wants your presence..... 
All alone under this sky, I am standing 
Wanting you to run towards me crawling..... 
The touch the love you made
I still live in your shade.... 

I am smiling but I am not happy 
I am even laughing but I am not happy.... 
I am diving but don't know why I am drowning
I am trying but I am not happy... 
I am crying yes I am not happy..... 

You remain in your world I wish 
You remain happiest I wish....  
You get what you want I wish
You be the luckiest girl I wish..... 
Smile always be with you I wish
Because you are the only thing I wish...... 

Why you took my smile away
When u left me a while ago......

Wednesday, August 24, 2016


                            बेटे की हरकत बनी  शर्मिन्दिगी 

कौशलपुर की तो शाम ही जैसे शुरू नहीं होती थी अगर नारायण जी का कुल्फी का ठेला गाँव की हर गली से न निकल जाए। 
नारायण जी बहुत ही सीधे-साधे व्यक्ति थे स्वाभाव से कोमल और उसूलों के पक्के वाले व्यक्तित्व के थे।दो ही काम थे दिन के सुबह खेती करते और शाम को सड़क के पास कुल्फी बेचते ,, बच्चों से नारायण जी का अलग लगाव था कभी कभी तो अगर बच्चे को कुल्फी के लिए ज़िद्द करते देखते और उनके माता या पिता मना कर रहे होते थे तो खुद ही मुफ़्त की कुल्फी खिला देते बच्चों के आँखों में आँसूं नहीं देख सकते थे। नारायण जी का एक बेटा था डब्बू ,,अब बिन माँ का बेटा कैसा हो सकता था बिगड़ा ज़िद्दी ,,डब्बू में भी ये सब अवगुण थे  हालाँकि नारायण जी के सामने कभी कुछ नहीं करता था क्यूँकि जनता था बखूबी की नारायण जी की लाठी और उनका गुस्सा बहुत तेज़ बरसता है ,, और बुरी आदत थी तो वो भी बस रुपयों की ,,,,जहा देखो जिससे देखो शर्त लगाता उधार माँग लेता कभी ये तो कभी वो बहुत बवाल थे उसके। 
दिन गुज़रते गए और नारायण जी की उम्र ढलती गई ,,,गाँव में अब सब बदल रहा था ,,नई सड़कें नए मकान पर नहीं बदला था तो नारायण जी का कुल्फी का ठेला और उनका बच्चों की तरफ उनका प्यार ,,,डब्बू भी बड़ा हो गया था और उसकी रुपयों की लालच भी बाद गई थी कहने को तो वो पढ़ने जाता था पर उसकी नज़र थी तो गाँव के सबसे अमीर प्रधान जी की लड़की पर ,,,सोच लिया था उसने की उसकी लड़की से शादी करेगा तो खूब आमदनी हो जाएगी। अब ज़िद्दी तो था ही ऐसा चक्कर चलाया की प्रधान जी राज़ी हो गए ,,हालाँकि नारायण जी को ये रिश्ता नहीं पसंद था पर लोग बुरे नहीं थे तो वो भी राज़ी हो गए और शादी सबकी सहमति से हो भी गई। ... 
शादी को एक साल हो गया था डब्बू के रंग एक दम बदल गए थे अब उसके ज़बान पर सिर्फ उसके ससुराल वाले ही थे ,,जब देखो सासु माँ सौसर जी ही रटता रहता था अपने खुद के पिताजी उससे बोझ लगने लगे थे पर कभी दिखा नहीं सकता था क्यूंकि डर तो अभी भी था नारायण जी का उसके मन में ,,घर में आज एक सदस्य जुड़ा गया था ,नारायण जी का पोता अस्पताल से आया था। .उसे देख नारायण जी फूले नही समा रहे थे। .अब नारायण जी को वैसे ही बच्चों से इतना प्रेम था और ये तो खुद का ही खून था और उनके  वंश का वारिस। 

नारायण जी : आज कितना अच्छा दिन है आज मेरे पोते का नामकरन है। मुझे समझ नहीं आ रहा क्या नाम रखूं इसका 
मिश्रा जी : वो तो सब ठीक है पर क्या तुम्हारा बेटा तुम्हे ये मौका देगा ?
नारायण जी : अरे ऐसे क्यों बोल रहा है मेरा बेटा नालायक है गैर ज़िम्मेदार नहीं की अपने बाप को ही भूल जाए। 
मिश्रा जी: जिस तरह वो ससुर जी का चमचा है मुझे नहीं लगता पर चलो मैं यही दुआ करता हूँ की तुम ही नाम रखो ,,चलो शाम को मिलते हैं ,,,जी सिया राम। 

आज घड़ी भी महसूस कर रही थी की नारायण जी कितने बेचैन है जिस तरह से उसे नारायण जी घूर रहे थे बार बार उससे तो उसे यही लग रहा था और नारायण जी घड़ी  को कोस रहे थे की कम्बखत आज बड़ी धीरे चल रही है ,,इतने में पंडितजी की दस्तक ने ये सिलसिला भी समाप्त कर दिया और कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। ....... 
पंडितजी : जिसे भी नाम रखना है आगे आइये और लड़के का नाम क शब्द से रखें। 
डब्बू : सासु माँ जी कुछ अच्छा  नाम रखियेगा। 

बस मिश्रा जी  का शक सही था कोने में खड़े मिश्रा जी ये सब देख रहे थे। .ये नज़ारा उनकी आँखें देख नहीं पाई और शर्मिंदा भरी निगाहें निचे किए वो बीच में ही चले गए ,,,,पर नारायण जी बिलकुल भी दुखी नही दिखे बल्कि उन्होंने मन में सोच लिया  दुनिया कुछ भी बुलाए वो उसे क से कृष्णा ही बुलाएंगे ,,अब उसके दो नाम थे करन और कृष्णा सिर्फ नारायण जी के लिए  ....... 

कृष्णा अब बड़ा हो रहा था और नारायण  हर  समय घर पर ही रहते थे ,,,कृष्णा का दिन अब कुछ ऐसा जाता की सुबह मंदिर दिन भर अपने दादाजी के मुह से भजन सुनता और शाम को नहर की किनारे खेलता दादाजी के साथ ,,अब दादाजी के साथ इतना रहता था की अपने पिता से ज़्यादा दादाजी को मानने लगा था ,,और संस्कार भी पुरे दादाजी वाले ,,,

कृष्णा के बारहवे जन्मदिन की रात 
शालिनी : क्योंजी ,पिता जी के पास इतना कहा से आया की करन (कृष्णा ) के लिए सोने के कढ़े ले आए। 
डब्बू : अरे ट्यूब बेल के पास एक खेत है वो पिताजी ने किराए पर उठा  रखा है  बस वही से सारा आता है। 
शालिनी: तो हम उसे बेच क्यों नहीं  देते ?
डब्बू : अरे वो माँ के नाम की ज़मीन है पिताजी जीते जीते जी उनकी आखरी निशानी बेचने नहीं देंगे। 
शालिनी : तो अगर वो ज़िंदा ही नही रहे तो तब तो बेच सकते हैं ?
डब्बू: अरे पागल हो की ऐसा क्यों बोल रही पिताजी क्यों मरे ?
शालिनी: सोचो अगर पताजी को हम मार दे तो शायद हम उन पैसों  जा पाएँ,,,और करन का दाखिल किसी अचे से स्कूल में करवा पाएंगे ,,,अब जीतेजी तो काम आ नही रहे मारने के बाद ही आ जाएँ। ....... 
दब्बू: हाँ शायद तुम सही बोल रही ठीक है कल नाश्ते में ज़हर दे देंगे। 

पर शायद वो भूल गए थे की उस कमरे में कोई और भी था। ."कृष्णा" जो अभी तक सोया नहीं था ,,वो ये सब सुन रहा था। .कृष्णा इतना भी छोटा नहीं था की उसे कुछ समझ न आए। .कृष्णा को  विश्वास ही नहीं हो रहा था की जिन दादाजी को वो भगवान् मंटा था उन्हें कोई जान से मारने को बोल रहे थे और वो भी उसके माता-पिता ,,
करन तो जैसे उस पल ही मर गया अब कृष्णा ही ज़िंदा रहेगा उसने सोच लिए था। .मुँह पर हाथ रखकर बिलखता रहा पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया की वो जग रहा है ,और इंतज़ार करता रहा की कब वो लोग सोएंगे। .....तकरीबन आधे घंटे बाद जब डब्बू और शालिनी सो गए तब उठा और नंगे पावँ ही भागा दादाजी के कमरे में और पहुँचते ही दादाजी से लिपट गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। ... नींद टूटी तो  घबरा गया और उसे उठाया।,,,,,

नारायणजी : क्या हुआ बेटा कोई बुरा सपना देखा क्या ?
कृष्णा : नहीं दादाजी आज मैंने बुरी हकीक़त देखि और सुनी ,,,
नारायणजी : अरे ऐसा क्या हो गया ,
कृष्णा : (रोते हुए ) दादाजी चलिए इस घर से कहीं दूर मुझे नहीं रहना यहाँ 
नारायणजी /: अरे बेटा कहा चलें यहाँ तो सब अपने रहते है इन्हें छोड़कर कहाँ जाएंगे ?

रोते रोते कृष्णा ने पूरी बात नारायण जी को सुनाई और उनसे लिपट गया। ...ये सब सुनकर नारायणजी सुन्न पढ़ गए। .उनका बेटा खुद उन्हें जान से मार देना  चाहता  है ,,,कुछ पल तो कुछ समझ ही नहीं आया की  करें  क्या पर अब पानी सर से ऊपर निकल चुका था। ..नारायणजी ने अपनी लाठी उठाई और कुछ भी नहीं सोचा सीधे डब्बू में कमरे में गए और बीएस क्या था फिर बरसा दी लाठी दोनों के ऊपर कहाँ लग रही पता नही किसको लग रही पता नहीं बस लाठी बरस रही थी। ..शोर शराबा मच गया पूरा गाँव इक्क्ठा हो गया थोड़े समय में जब बात पता चली तो लोग दोनों पति पत्नी पर थू थू करने लगे ,,,,इतने में नारायण जी आवाज़ आई "आज के बाद अगर तुम दोनों में से कोई भी इस गली में भी दिख गया तो इसी तरह मेरी लाठी तमसे बात करेगी बाकि बात रही तो कृष्णा की जब तक इन बूढी हड्डियों में ताकत है मैं इसका पालन पोषण करूँगा और इस बात का ध्यान रखूंगा की ये तुम्हारी  तरह कभी न बने "  


आज की सुबह हर सुबह की तरह थी बस अलग था तो वो नज़ारा जिसमे नारायण जी कुल्फी का ठेला गाँव की गलियों से निकल रहा था  और  कृष्णा उसे आगे बैठा था और बच्चे कुल्फी कुल्फी चिल्ला रहे थे। ... 


समाप्त। 

Saturday, August 20, 2016


                                                        रामवीर का सपना 



शाम का सात बज रहा था मटके अभी सूखे भी नहीं थे कि शुक्ला जी आ गए थे उन्हें लेने ,,,,रामवीर मटका बनाने वाला एक गरीब कारीगर था ,,और  शुक्ला जी गाँव में सबसे रहीस हस्ती थे।  गाँव में खबर थी की शुक्ला जी को तो पढ़ना भी नहीं आता था वो तो उनके पिता जी गाँव के प्रधान थे जो सब उनकी बहुत इज़्ज़त किया करते थे ,,शुक्ला जी चार साल पहले ही शहर गए थे और वहाँ पता नहीं कौन सा जादू चलाया की उनकी शहर में पांच दुकाने थी और उन दुकानों में शुक्ला जी कला से सुस्सजित हर वो वस्तु रखते थे जो बहुत ही सुन्दर होती थी ,,,,,

घोड़ा गाड़ी वाले  शुक्ला जी अब आसमान से नीचे पैर ही नहीं रखते थे और चालाकी तो उनके चेहरे से झलकती थी पर रामवीर क्या करता उसके लिए तो वही उसके अन्न दाता थे जो कुछ वो कमाता था वो शुक्ला जी को बेचे हुए मटकों और मूर्तियों से ही होता था ,,बस वो अपना और अपनी एक लौती बेटी गुड़िया का पेट ही भर  पाता था हालाँकि उसकी बेटी अब पढाई लायक हो गई थी पर धन न होने के कारण ये मुमकिन ही नहीं था की वो दाखिला ले पाए ,,अब कमाई भी तो देखो शुक्ला जी एक मटके के दो रूपए और मूर्ती के दस रूपए देते थे ,,रामवीर कई बार रूपए बढ़ाने की बात कर चुका था पर हर बार शुक्ला जी गाँव से निकलने की धमकी देकर शांत करवा देते थे। बस इसी डर के मारे रामवीर कुछ बोलता नहीं था 

 शुक्ला जी : अरे कहाँ मर गया जल्दी से आज का सामान ला दे और अपना हिस्सा ले जा ,,मझे बहुत जल्दी है घर पर दावत है मेरा बेटा अव्वल आया है। 
रामवीर : साहब मेरी भी बेटी का दाखिला करवा दीजिए मैं आपका ग़ुलाम बनकर रहूँगा। 
शुक्लाजी : अरे हट ! तू अपनी बेटी को चव्का बर्तन सीखा और किसी लड़के से शादी करदे ये क्या पढ़ेगी और तब ही ले लेना रूपए ,,,चल अब जल्दी से मटके दे ज़बान मत लड़ा। 

दुखी होकर रामवीर ने पैसे लिए और किवाड़ा बंद करके अंदर चला गया ,,,
रामवीर एक बहुत बड़ा कलाकार था उसके हाथ में ऐसा जादू था की जिस भी मिट्टी को छूट उसमे जान डाल देता  टूटी हुई मूर्ती तो ऐसे संवारता जैसे अभी बोलदेगी वो मूर्ती ,,सभी गाँव वाले उसकी तारीफ करते थे और उसे समझाते थे की शुक्ला जी के चक्कर में न पड़े ,,पर मजबूर रामवीर क्या कर सकता था ,,,
बस रामवीर तो अपनी मरी हुई बीवी को दिया हुआ वादा की अपनी बेटी को वो सरकारी ऑफिसर बनाएगा कैसे पूरा करेगा सोच सोच कर ढला जा रहा था। .... 

आठ महीने बाद ,
                 रामवीर : मेरे पास  इतने पैसे नहीं हैं की मैं गुड़िया को पढ़ा सँकू ,,
                 राधिका :मुझे नहीं पता अप्रैल का महीना आ गया है सब                                      जगह दाखिल शुरू हो गए हैं आप भी कुछ                                       कीजिए। 

                  रामवीर :बताओ क्या करूँ अपनी जान दे दूँ क्या ?

                   राधिका:अगर नहीं पढ़ा सकते अपनी बेटी को तो                                              देदीजिए अपनी जान जीने का आपको कोई हक़                                    नहीं। 


रामवीर की नींद टूट गई और थोड़े पल तो उसको समझ नहीं आया की सपना था या हकीकत ,,आँखें लाल आंसुओं की जैसे बारिश हो रही हो और सांसें तक चढ़ी  हुईं  थी ,,,इस दुःख में रामवीर इतना डूब गया की अब उसने खुदखुशी की ठान ली ,,,,बौखलाया हुआ रामवीर अब कुछ सोच नहीं पा रहा था  उसने जैसे ही चाकू उठाई उसने देखा की सूरज की एक बहुत छोटी से किरण एक मूर्ती पर पड़ रही थी जो टूटी हुई थी वो मूर्ती कल रात गुड़िया उठा लाई थी और कह रही थी की इसे तक कर दीजिए ,,रामवीर  ने सोचा की जाते जाते गुड़िया की ये मूर्ती बना दूँ ,,,बस फिर क्या था उठाई मूर्ती और शुरू हो गया ,,,रामवीर उस मूर्ती को बनाता जा रहा था और उसकी आँखों के सामने उसकी ज़िन्दगी भर के वो सरे पल आने लगे थे जो उसके लिए बहुत अच्छे थे ,,करीबन तीन घंटे बाद उसके हाथ में मिट्टी और आँखों में मरने की ज़िद्द थी ,,,मूर्ती बनी ही थी की दरवाज़े पर आहट हुई ,,बड़बड़ाते उठा की शुक्ला जी न तो जीने देते हैं न ही मरने ,,,दरवाज़ा खोला तो एक पच्चीस साल का लड़का खड़ा था ,,,चबूतरे से भी लंबी एक गाड़ी खड़ी थी जिसमे एक काला कपडा पहने एक वक़ील साहब बैठे थे ,,


      वक़ील : ये जो मटके और मूर्ती बनाते हो वो तुम ही हो न। 

      रामवीर : नहीं मर गया वो अब कोई नहीं बनाता मटके मटकी                               चले जाइये यहाँ से। 


इतने में नज़र घुमाई तो वो लड़का घर के अंदर जा चुका था और उसी मूर्ती को देख रहा था जो अभी रामवीर ने अपनी गुड़िया के लिए तैय्यार की थी ,,,मूर्ती की जितनी तारीफ करो वो कम थी ,,,एक तरफ चहरे के मुस्कराहट थी तो दूसरी तरफ दुःख था ज़िन्दगी के दोनों रूप उस मूर्ती में दिख रहा था ,,,

वक़ील:ये मूर्ती का काम तुम शहर क्यूँ नहीं लाते। 
रामवीर: मैं तो गरीब आदमी हूँ साहब कभी रेलगाड़ी में नहीँ बैठा ,,शहर कैसे आता। 
वक़ील : अच्छा एक बात बताओ शुक्ला जी तुमसे ही मूर्तीयाँ लेकर जाते हैं?
रामवीर : हाँ साहब दो रूपए का मटका और दस रूपए की मूर्ती। 
वक़ील : तुम्हे कुछ अंदाज़ा भी है ये कितने की बिकती है शहर में ?
रामवीर : कितने की बिकती होगी साहब सौ रूपए की 
वकील : ये मूर्ती वह हज़ारों की बिकती हैं इनकी नीलामी होती है शहर में। ..शुक्ला जी अच्छा खेल गए तुम्हारे साथ वो तो मेरा बेटा बचपन से ही बोल और सुन नहीं सकता पर इसे मुर्तीयों से बहुत लगाव है इसने जब शुक्लाजी के यहाँ तुम्हारी मूर्ती देखि तभी इसे शक हो गया था की कुछ तो गड़बड़ है ये उनके हाथ की मूर्ती नहीं और तबसे ये तुम्हें ढूंढ रहा है ,.. 
ये सुनते ही रामवीर के पैरों से ज़मीन खिसक गई पर उस लड़के ने उसे गले लगा लिए और गिरने से बचा लिया ,,,,पहली बार इतना स्नेह और प्यार देख वो भी बच्चे जैसा रोने लगा। ....... बहुत ज़िद्द करने पर रामवीर और गुड़िया वकील के साथ शहर चले गए ,,


आज  मूर्ती की नीलामी थी और डेढ़ करोड़ की वो मूर्ती बिकी और आज ही के दिन गुड़िया का दाखिला भी हो गया। .रामवीर का किया हुआ वादा पूरा हो गया था  अपनी बेटी को स्कूल के दरवाज़े पर यही समझाया की 
"कला  के कद्र करने वाले काम नहीं हैं इस दुनिया में इसलिए सदा ही अपना काम बखूबी करते रो कोई न कोई इसे ज़रूर पहचानता है ". . . . . . 



 समाप्त। 











Sunday, August 14, 2016


                                        भारत के शहीद 




कुछ करना है कुछ करते हैं ,
भारत  की रक्षा के लिए मरते हैं.. 
पर्वत की चट्टानें तो भगवान  की अर्ज़ी से हैं,
मगर बन कर चट्टान ये वह हैं  खड़े ये अपनी मर्ज़ी से हैं.... 
रात अँधेरी में जब ये आसमान भी सोता है ,
हथेली पर जान रखकर सीमा पर ये जवान ही होता है। ... 
हिंदुस्तान की तरफ जब भी कोई नज़र टेढ़ी करता है ,
तब एक यही जवान होता है जो देश के लिए मरता है। .... 

सीमा को बचाया ऐसे है की घुसबैठ का न कोई सवाल है ,,,
पर कैसे लड़ें खुद के लोगों से जिन्होंने मचाया इतना बवाल है। .. 
हिंदुस्तान की मिटटी पर खड़े होकर ये ऐसे नारे लगाते  हैं ,,,
मुझे  ये समझ आता नहीं की ये इतनी हिम्मत लाते  कहा से हैं। .. 
कभी पूछो किसी शहीद की माँ से उसके हाल,,,
की चीज़ था उसका बीटा और कितना किया था उसने दुश्मन की नाक पर बवाल। .. 
सब बातें सुनकर अपने किए हर एक गलती पर पछताओगे ,,
दावा करता   हूँ उसके चार शब्दों से ही टीम रो जाओगे। .... 
तब मैं तुमसे पूछुंगा की कितना सही है कहना की हम लड़कर लेंगे आज़ादी हम मर कर लेंगे आज़ादी....... 



रक्त बहा था उनका तब तब ,,,,,रक्त बहा है उनका अब अब  ,,,,
खुनी भेड़ियों की निगाहें भारत की मिटटी पर पड़ी है जब जब। ...... 
आज भी इस मिटटी से बगत सिंह और चंद्र शेखर के लहू की खुशबु आती है,,,
भूल गए हैं जो देश के बेटे उन्हें ये सिखाती है,,,
की बहुत बन लिए तेंदुलकर और बहुत बन लिए कोहली ,,
अब बारी है की तुम  सीने पर खाए भारत माता के लिए गोली,,,,
माटी का खिलौना छोड़ अब तू तिरंगा उठाएगा ,
और हर उस माँ बाप का जेवन सफल हो जाएगा ,,,,
जब उनका बेटा कसाब नहीं हनुमंथप्पा कहलाएगा। ...... 

जय हिन्द जय भारत 



Monday, August 8, 2016


                                              ठाकुर जी का शिष्य 




दिन बारह अप्रैल सन २००१ ,,,
आज सुबह सुबह उसकी आवाज़ पहली बार मझे  पुकार  रही थी। अक्सर ये आवज़ मेरे बाबूजी के लिए होती थी।
नींद में कुछ ठीक से समझ नहीं आ रहा था पर हाँ कुछ जानी पहचानी सी कोई अपने की आवाज़ थी ,,,बहुत गुस्से में उठी और दरवाज़े पर खड़ी  हुई तो देखा की सजल  बाहर  खड़ा था जो की मेरे बाबूजी का सबसे बेहतरीन तैयार किया हुआ खिलाडी था ,,,घडी पर देखा तो पूरे पांच बज रहे हैं,, अरे ये यहाँ क्या कर रहा है इस समय तो इसे खेत में होना चाहिए था बाबु जी तो जा चुके हैं खेत की तरफ ,,,इन सब ख्यालों के पुल पर चल ही  रही थी की फिर से एक आवाज़ आई ,,
सजल ; क्या हुआ नींद ख़राब करदी क्या मैंने ? वो मैं  तो आपको कभी परेशां न करूँ वो ज़रा ठाकुर साहब ने मुग्दल  मंगवाया हैं। ...
कुसुम ; नहीं जी मैं  कोई देर से सोने वाली बिगड़ी लड़कियों में से थोड़ी हूँ। मैं तो अपने बाबूजी  के साथ उठ जाती हूँ आपको क्या लगता है मेरे बाबूजी मेरे हाथ की चाय पिए  बिना ही चले जाते होंगे ,,,,

झूठ तो जैसे कुसुम के चहरे से टपक रहा था , और सजल को सब समझ आ   रहा था  ,,,अगले ही कुछ लफ़्ज़ों ने कुसुम के जहान  को बदल दिया और शुरुवात हुई उसकी  नई ज़िन्दगी की ,,,, सजल बहुत ही नम्र लफ़्ज़ों में बोला की
"मुझे पता है आप सबका बहुत ख्याल रखती हैं और ठाकुर जी के संस्कार ही  हैं जिस भी घर में आप जाएंगी वो घर बहुत खुसनसीब होगा "
 और बहुत धीमे आवाज़ में बोला की
"काश की मैं वो सुख पा पाऊ "
सजल को लगा की ये आखरी की बात सुन नहीं पाईं मगर इस बात ने सब कुछ बदल दिया था ,,,अभी तक तो सिर्फ  उसकी पसंद था सजल पर अब तो जैसे सब कुछ होने लगा था ,,,सजल तो चला गया पर आज दिन कुछ अलग ही था ,,,मुस्कराते हुए काम तो ऐसे कर रही थी जैसे की सही में बड़ी कामक़ाज़ी हो।

बाबूजी;आज क्या बनाया है

कुसुम ; बाबूजी आज मैंने आपकी सबसे पसंद की सब्ज़ी लौकी के कोफ्ते बनाए  हैं

बाबूजी : अरे वाह क्या  बात है एक काम कर  सजल को फ़ोन करदे वो भी खाले  आकर ,,उसे भी  बहुत पसंद है

कुसुम मन में मुस्करा रही थी क्यूंकि उस्की रचाई हुई साजिश काम कर रही थी ,,उसे  पता था की सजल को भी ये सब्ज़ी बहुत पसंद  थी ,,सजल आ गया ,,आज दोनों बदले बदले  से थे ,,नज़रें आज मिल रही थी तो अलग भाव था। मगर सजल जानता  था की वो  उससे कभी नहीं बोल पाएगा क्यूंकि वो उसके गुरु की लड़की थी और वो नहीं चाहता था की   गुरु शिष्य का रिश्ता खराब न हो ,,,पर कुसुम तो  खो गई थी और अब वो दिन रात यही सोचती कैसे उसका दीदार हो जाए ,,
रोज़ सुबह शाम खेत किसी न किसी बहाने से चली जाती ठाकुर  खुश हो जाते की बेटी का  काम में मन लगने लगा है ,,ठाकुर जी सजल को बहुत प्यार करते थे   उसके ज़रिए एक सपना  देखते थे ,,,बात ये है की ठाकुर जी का एक लड़का था  जो बहुत ही कम उम्र में  उसका देहांत हो गया था और उनके परिवार में भारत के लिए खून बहाने के लिए हर पीढ़ी  से कोई न कोई  जाता था पर अब ये मुमकिन नहीं था तो वो सजल को तयार क़र रहे थे ,,,,और सजल  बहुत ही बड़िया शिष्य था पुरे रात दिन मेहनत करता ताकि ठाकुर जी का सपना पूरा हो जाए और उसे  कुसुम मिल जाए ,,,

दिन १६ जुलाई सं २००२
आज अख़बार में सजल  का चित्र था और बड़े बड़े शब्दों  लिखा  था ,,"शिष्य ने किआ गुरु का सपना पूरा "
आज सजल को भारतीय  की सेना में दाखिल कर लिए गया था। ठाकुर जी तो जैसे फूले नहीं समा रहे थे गांव भर को न्योता दे दिया था ,,,आज तो बस ये  मानलो की ठाकुर जी से कुछ मंगलो वो कभी मना  नही करेंगे ,,शाम हो चुकी थी,,, सजल नहीं आया सब उसका इंतज़ार  कर  रहे थे ,,आई थी   तो उसकी खबर ,,,एक  पुलिस वाला आया जिसके हाथ में कुछ लिफाफा था ,,सबको लगा न्योते में इन्हें भी बुलाया गया है.पर ये  कुछ और ही काम से आए थे ,,

ठाकुरजी; क्या बात है भाईसाहब आप यहाँ

पुलिस ;जी ये लिफाफा देखिये और बताइये क्या ये सामान आपके किसी के जानपहचान का है।

 ..अब  खुशियों का माहौल गर्म हो गया था  वो आपस में बात कर रहा था की कौन हो सकता है किसका सामान हैं पता लगाने पर उसने बताया की कुछ लड़के पास के गांव में गुंडागर्दी कर रहे थे तो ये नवजवान लड़का भिड़ गया और उन्हने इसे बेहरहमी से मारडाला ,,आप लोग ज़रा  देखलिजिए की ये सामान को आप पहचानते हो क्या। ..
अब ठाकुरजी की सांसें  थम गई थी  .... उन्हें खबर लग गई थी की ये सामान सजल का ही है। लिफाफा खोलते ही घडी निकली जो सजल की ही थी ,,,बस अब क्या था रोआ पीटी मच गई थी ,,,कुसुम तो वही बैठ गई जहा खड़ी थी उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी ,,खत निकालते हुए पुलिस ने बोला ये खत भी मिला है उसकी जेब से। .. खत  ठाकुरजी को लिखा गया था इसलिए उन्हें ही पकड़ा दिया गया ,,


बाबूजी,
             मैं आपसे एक बात बोलना चाहता हूँ की मैं आपके  सपने को पूरा कर चुका हूँ,,,,आज से आपके शिष्य को दुनिया सलाम ठोकेगी और जब जब ये सलाम मझे मिलेगा मझे  याद सिर्फ आपकी ही आएगी की  आपकी वजह से हूँ ,,मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ पर आज मैं आपसे एक बात बोलना  चाहता हूँ ,,,मैं आपकी बेटी से बहुत प्यार करता हूँ ,,पर मैं  आपकी इजाज़त के बिना उसे  ये बात नहीं बताऊंगा,,,, मेरे लिए अपना  प्यार  नहीं बल्कि आपकी प्रतिष्ठा  ज़्यादा ज़रूरी है। अगर ये खत पढ़कर  आपको लगे  आपकी बेटी के लिए हूँ तो बस एक बार ज़ोर से मझे पुकारियेगा ,,,मैं दौड़कर आजाऊंगा।
          राधे राधे। 


खत ख़त्म हुआ और ठाकुरजी जी की लाल आँखें अब सिर्फ सजल को देखना चाहती थी ,,और ज़ोर से चिल्लाए की काश तू वापिस आजाए ,,तू तो मेरा बेटा है मुझे तो तुझसे साफ़ दिल और कोई मिलेगा भी नहीं। .. कुसुम की तरफ देखा और बस आंसुओं में टूट गए ,,,

उधर  आवाज़ आई की मुझे  पता तो था की आप सब मुझसे  इतना प्यार करते हैं पर इतना ये नहीं पता था ,,कुसुम को आज फिर वही आवाज़ सुनाई दी जो उसकी धड़कन हर बार बड़ा देती है ,,क्या ये सजल बोला। उधर अँधेरे में खड़ा सजल रौशनी में आ  गया  ..सजल को देखते ही सबके भाव बदल गए पीड़ा  के जो बादल  थे वो साफ़ हो गए। .वह सच में  सजल खड़ा था इतना माहौल बिगड़ गया था की किसीने ध्यान ही नहीं दिया। .
ठाकुरजी आंसुओं से लतपत  और सजल की तरफ दौड़ के गए और उसे  गले लगा लिया ,उनके मुंह से सिर्फ यही निकल  की एक लड़का खो चुका दूसरे को  खोने की ताक़त नहीं मझमे। .सजल की आंखें इस प्यार और  अपनेपन को देखकर लाल हो गई थी उसे उम्मीद  ही नहीं थी की वो इतना ज़रूरी था ठाकुरजी के लिए ,,, गले मिलते हुए जब उसने कुसुम की तरफ देखा तो वो नज़ारा ज़िन्दगी भर नहीं भूल पाएगा। .कुसुम  एक पल भी अपनी आँखें नहीं झपका रही थी प्यार वाली नज़र ने  तो जैसे पागल करदिया था ,उसे नहीं पता था की कुसुम भी उससे इतना प्यार करती है। ...
सब नाटक रचा था सजल ने वो पुलिस वाला और कोई नही गांव का  लड़का था जिसकी पुलिस में कल ही भर्ती हुई थी। ..सजल को अंदाज़ा नहीं  था  की उसकी और कुसुम की बात जानकर कैसे ठाकुरजी को सामना करूँगा तो उसने ठान लिए था की मंज़ूर होगा तो सामने आऊंगा वरना वहाँ  से हमेशा के लिए चला  जाएगा  इसलिए उसने ये सब किआ ,,,,,
 कुसुम ने ये सुनने के बाद सजल को एक खींच कर गाल पर मारा  और रोते रोते गले से लगा लिया ,,,अगली बार मरने की बात कही तो सच में इन हाथों से मारदूँगी ,,और कसके गले लगा लिया ,,,सब हँसने लगे और ठाकुरजी खाने का इंतेज़ाम देखने के लिए बहार चले गए ,,,


समाप्त 




Saturday, August 6, 2016



                                           शहर  में खोज 


आज  नंवा दिन था जबसे किशोर की कोई खबर नहीं आई थी। .वरना नियम से रोज़ ५ बार फोन करता था, क्या खाया क्या पिया कुछ दिक्कत तो नहीं जैसे सवाल तो जैसे राखी को रोज़ सुनने पड़ते  थे। पर आज वो सवाल भी नहीं हे और किशोर की कोई खबर। १ सप्ताह तो ये मान लिए की कहीं किसी काम में फस गया होगा या फ़ोन खराब हो गया होगा। कई बहाने  मान लिए पर अब नहीं ,,,,नौ  दिन    सात घंटे हो गए थे। किशोर ४५० किमी दूर शहर में  रहता जहा वो मज़दूरी करके कुछ पैसे कमाता था गांव में सूखा  पड़ने के कारन घर में खाने को कुछ नहीं बचा था।  किशोर बूढ़े बाप और बीवी को छोड़कर शहर चला गया था ।  वहा  से जो बन पड़ता भेजता था ,,,यहाँ तक की पिछली दिवाली टीवी भी लाया था ताकि राखी घर पर अकेली समय काट पाए और उसे कोई तकलीफ न हो।
पर अब दिल बैठने लगा था बूढ़े बाप तो चिंता में रोज़ खाना कम करता जा रहा था ,,तबियत तो ढीली थी ही और अब चिंता में और बिमारियों ने घेर लिए था.

राखी: बापूजी मझसे और सबर नहीं होता मझे शहर जाना है और इनका पता लगाना है।
बापूजी: हां बहु जाओ मेरे बक्से में ४००० है और बाकि तीन हज़ार शर्मा जी से लेलेना और हाँ राजू को बोल देना की स्टेशन तक छोड़ देगा।
राजू:भाभी जी ये लो खाना  इसमें करेले रखवा दिए हैं खा लीजिएगा और ये लीजिए मेरा फ़ोन नंबर जब भी ज़रूरत पड़े मिला दीजेगा आजाऊंगा।
गाडी प्लेटफार्म छोड़ चुकी थी।  पिछली बार जब गांव छोड़ा था तब बस शादी के बाद पिछली बार अपने घर गई थी  और तब किशोर साथ था ,,,आज भी वही लोग हैं पर अकेली नारी को देखने का नज़रिया बदल गया था कोई अजीब बातें कर  रहे थे और कुछ तो सिर्फ घूर रहे थे ,,,एक परिवार था जिसके सबसे बड़े थे शिवनारायण पांडेय जो अपनी बीवी के संग गांव आए हुए थे अपने बेटे का मुंडन करवनवाने। उन्हें देखने राखी ने उनके पास ह जगह देखली।
बारिश का मौसम था ७ घंटे का सफर अब १४ घंटों का हो गया था भूख ने परेशां  कर रखा था पर झोले की तरफ निगाहें अपने आप खिंची चली जा रही थी और फिर ख्याल आता की पता नहीं किशोर ने खाया होगा की नहीं शहर जाते ही उसे ये करेले की  सब्ज़ी खिलाऊंगी ,,,ये सोचते सोचते समय निकल गया। .खिड़की से गुज़रते हर मंदिर अब उसके विश्वास का प्रतीक बनते  जा रहे थे।

पांडेय जी सारी कहानी और चिंताएं समझ गए थे ,,,शहर में  व्यापर था और दिल तो इतना सुन्दर की दुश्मन   भी उनका दीवाना था ,, पूजा पाठ करने वाले पांडेयजी ने ठान लिआ की   उनसे जो बन पड़ेगा करेंगे पर थे तो वो शहरी ,,,किशोर की  समझाई  बात राखी भूलती नहीं थी ,,उसे याद है एक बार किशोर ने फोन पर कहा था किसी भीं शहरी पर विश्वास नहीं करना और खासकर के अमीर पर ,,, पांडेयजी दोनों गुड़ुओं से परिपूर्ण थे।  गाडी ने शहर में आने का इशारा देना शुरू ही किया था की राखी ने नज़र बचाते हुए निकल गई और पांडेयजी  ढूँढ़ते रह गए ,,

राजू के बताये पते  पर रखी पहुंची और दरवाज़े को उम्मीद से दस्तक दी  तो,,,,
"आदमी" - हांजी कौन
राखी;जी मैं  किशोर की पत्नी,,,   ये हैं  ?
आदमी : हाँ वो  गांव गया हुआ है यही कुछ १०  दिन  हुए है
राखी :मैं  तो गांव से ही आ  रही हूँ
नींद तो जैसे चिंता  में बदल गयी  छोटू अपने दोस्त की ये बात जानकर हैरान हो गया की किशोर का पता नहीं और उसे कुछ खबर नहीं। ... सोच  में डूबता  जा रहा था की राखी के गिरते आंसुओ ने उसे वापस खींच  लिया। ...फ़ोन तो ऐसे घूमने लगा जैसे अभी  किशोर उठाएगा और  बोलेगा आ रहा  उधर  से आती तो सिर्फ कंप्यूटर की आवाज़ की ये नंबर बंद है  , पता लगाने पर ये खबर मिली की किशोर ने राखी के लये कुछ लिया  था  और उसी में व्यस्त रहता था  किसे  पता था की राखी से प्यार करने की आदत उसे परेशानी में दाल देगी `

आज शहर में आए तीसरा दिन था और किशोर   की कुछ खबर नहीं थी यहाँ तक की रखे करेले भी जवाब दे गए थे।
सुबह से राखी के ज़हन में पांडेयजी का चेहरा घूम रहा था ,,उसे याद आया की पांडेयजी ने उसे एक नंबर दिया था ढूंढने  पर उसके पर्स से दो पर्ची निकली दोनों में नाम नहीं था एक थी की राजू की और एक पांडेय जी की राजू को वो फ़ोन नही करना चाहती थी उसने एक पर्ची उठाई और डरते हुए मिला दिया फ़ोन किस्मत तो खेल ही रही थी  भी तो राजू को मिल गया  , उसके सवाल उससे झेले नहीं गए और उसने झट से फ़ोन काट दिया.. और  पांडेय जी को मिलाने की और उसका डिल चिल्ला कर बस यही बोल रहा की कोई  उसकी मदद करो।
पांडेयजी; हेल्लो कोन
राखी; मैं  राखी ,, पता नहीं चला  इनका। आप कुछ मदद कर दीजिए। ..
पांडेयजी ; हां मैं  कुछ करता हूँ
जैसे पांडेयजी वैसे उनके काम उसी शाम को पता लगा लिए की क्या हुआ


पर वो बताने में घबरा रहे थे की शहर के पुलिस अधिकारी के घर के सामने ज़मीन ली थी राखी के नाम की,,अब उन्हें ये दिक्कत थी की  उनके सामने एक मज़दूर रहेगा,,,, बहुत समझने पर जब नहीं  माना बात इतनी बड़  गई   उसे बंधी बना लिआ और ये ज़िद्द पकड़ ली कि जब तक किशोर ज़मीन के कागज़ नहीं  दे देता तब तक खाना  नहीं देगा। ...
यह बात जब राखी को पता चली तो उसके चेहरे पर दो भाव थे एक तो डर का की कहीं किशोर को कुछ हो न जाए और दूसरा उसको बहुत गर्व हो रहा थी की उसका पति इतनी हिम्मत रखता है की वो लड़ रहा है अपनी चीज़ के लिए


पुलिस वाले के घर में नौकर  कमी नही थी ,,मालिकिन का  सुन्दर  गरीब को देखती थी उसकी कहानी सुनती और उसे अपने घर में काम दे देती और इसी  उठा कर राखी ने उनके घर में प्रवेश कर लिए अब राखी की आदत थी रोने का नाटक करने की गांव में भी जब चार औरतें बैठती थी घर की  लेकर रोटी ही थी। .
उसके इस आंसुओं को देख कर मंदिर से उसे मालकिन अपने घर ले आई। .राखी का आधा काम तो हो गया था। अब बरी थी किशोर को ढूंढने की ,,,मालकिन को भी पता नहीं थ किशोर के बारे में अब पीछे वाला कमर मालिक साहब को ह  वह की  मालकिन इतनी व्यस्त थी की  सोचा ही न की वह की हो रहा। .शाम हुई कूड़े का डिब्बा लिए रख पहुंची सीधे उस कमरे के बाहर दरवाज़ा खोल तो  धुल की चादर उस पर आ गिरी ,,,हटाते हुए चादर के  नज़ारा देखा वो किसी भी पत्नी के समझ के बाहर  था ,, रस्सी में बंधा किशोर ज़मीन पर पड़ा हुआ था। .
पानी पानी करने की आवाज़ जब राखी   के कानो पर पड़ी थी तब उसे होश आया और उसने किसोर के हाथ खोल उसे पानी पिलाया। .चुल्लू से पानी पी रहा किशोर पानी और  के गिरते आंसू पि रहा था,,,होश आय ऑटो अपनी आवाज़ सुन किशोर को लगा की उसकी याद्दाश कुछ खराब हो गई ही है और खाने की कमी   हो रहा और आखरी समय उसे अपनी पत्नी याद रही पर  उजाले में जब उसने राखी को देखा तो हैरान और रोने लगा उसके  निकला की मैंने तेरे  केलिए एक घर लिया है तुझे अब कोई परेशानी नहीं होगी बोलते ही बेहोश हो गया ,,ये सब देखकर राखी के अन्स्सून थमने का नाम नही ले रहे थे। खुदको होश में लेट वक़्त उसने अपने आपको सम्भल और सुबह किशोर को भागने का सोचने लगी। .खाने में मनन तो कर  रहा था उसका की ज़हर मिला दे पर मालिकिन का की कुसूर वो तो अची थी ,,बेहोशी की दावा डाल उसने बहुत ही लज़ीज़ज़ कहना बनाया की सब  खाए ,,अब वो अपने कमरे में  लेटी थी और दवा के असर दिखने का इंतज़ार कर  रही थी रात के करीब दो बज रहे थे सब बेहोशी में थे की दरवाज़ा खोल राखी किशोर को ले भागी और वह एक चोट सा खत छोड़ गई



साहब ,मैं राखी आप अपने जीवन में एक बात याद रखियेगा की पत्नी तो अपने पति के प्राण के लिए यमराज से लड़ जाती है आप तो फिर भी एक इंसान थे।




समाम्प्त



Thursday, August 4, 2016

                                         Nai shuruwat






Rok ke khudko maine yun thaam rakha hai..
nai hai rahein auron ne ye rastaa jaan rakha hai..
Kuch baatein achanak ho jati hain...
Jab badal jae jeene ka dhang to raatein  bhayanak ho jati hai...
Azad udta tha us BAdal ki tarah jo...
GIR na jae kahin ye sansein bhi thaam rakhin hain,,


Rok ke khudko maine yun thaam rakha hai..
nai hai rahein auron ne ye rastaa jaan rakha hai..
Bhoola nahin hu aaj bhi jung me ladna ..
fitrat me nahi hai kisi bhi raste se mudna...
Ab aaya hu dariya me to chappu bahar to niklega...
aur chlega ye silsila jab tk pehla nazara door kinara niklega....


Rok ke khudko maine yun thaam rakha hai..
nai hai rahein auron ne ye rastaa jaan rakha hai..
baadal se nikli boond ko girne se ky koi rok paaaya hai..
kya Shunyaa ka matlab aasman se khud aaya hai....
Kuch seekhna hai,kuch seekhana hai..
pehchan bna hi is duniya se jana hai..
Udte hue Parinde ki Udaan kisi ke haath ki nahi hoti...
karte rhe jo aata hai bs ye jaaanlo kismat hamesha nahi soti...


Rok ke khudko maine yun thaam rakha hai..
nai hai rahein auron ne ye rastaa jaan rakha hai..