Saturday, August 6, 2016



                                           शहर  में खोज 


आज  नंवा दिन था जबसे किशोर की कोई खबर नहीं आई थी। .वरना नियम से रोज़ ५ बार फोन करता था, क्या खाया क्या पिया कुछ दिक्कत तो नहीं जैसे सवाल तो जैसे राखी को रोज़ सुनने पड़ते  थे। पर आज वो सवाल भी नहीं हे और किशोर की कोई खबर। १ सप्ताह तो ये मान लिए की कहीं किसी काम में फस गया होगा या फ़ोन खराब हो गया होगा। कई बहाने  मान लिए पर अब नहीं ,,,,नौ  दिन    सात घंटे हो गए थे। किशोर ४५० किमी दूर शहर में  रहता जहा वो मज़दूरी करके कुछ पैसे कमाता था गांव में सूखा  पड़ने के कारन घर में खाने को कुछ नहीं बचा था।  किशोर बूढ़े बाप और बीवी को छोड़कर शहर चला गया था ।  वहा  से जो बन पड़ता भेजता था ,,,यहाँ तक की पिछली दिवाली टीवी भी लाया था ताकि राखी घर पर अकेली समय काट पाए और उसे कोई तकलीफ न हो।
पर अब दिल बैठने लगा था बूढ़े बाप तो चिंता में रोज़ खाना कम करता जा रहा था ,,तबियत तो ढीली थी ही और अब चिंता में और बिमारियों ने घेर लिए था.

राखी: बापूजी मझसे और सबर नहीं होता मझे शहर जाना है और इनका पता लगाना है।
बापूजी: हां बहु जाओ मेरे बक्से में ४००० है और बाकि तीन हज़ार शर्मा जी से लेलेना और हाँ राजू को बोल देना की स्टेशन तक छोड़ देगा।
राजू:भाभी जी ये लो खाना  इसमें करेले रखवा दिए हैं खा लीजिएगा और ये लीजिए मेरा फ़ोन नंबर जब भी ज़रूरत पड़े मिला दीजेगा आजाऊंगा।
गाडी प्लेटफार्म छोड़ चुकी थी।  पिछली बार जब गांव छोड़ा था तब बस शादी के बाद पिछली बार अपने घर गई थी  और तब किशोर साथ था ,,,आज भी वही लोग हैं पर अकेली नारी को देखने का नज़रिया बदल गया था कोई अजीब बातें कर  रहे थे और कुछ तो सिर्फ घूर रहे थे ,,,एक परिवार था जिसके सबसे बड़े थे शिवनारायण पांडेय जो अपनी बीवी के संग गांव आए हुए थे अपने बेटे का मुंडन करवनवाने। उन्हें देखने राखी ने उनके पास ह जगह देखली।
बारिश का मौसम था ७ घंटे का सफर अब १४ घंटों का हो गया था भूख ने परेशां  कर रखा था पर झोले की तरफ निगाहें अपने आप खिंची चली जा रही थी और फिर ख्याल आता की पता नहीं किशोर ने खाया होगा की नहीं शहर जाते ही उसे ये करेले की  सब्ज़ी खिलाऊंगी ,,,ये सोचते सोचते समय निकल गया। .खिड़की से गुज़रते हर मंदिर अब उसके विश्वास का प्रतीक बनते  जा रहे थे।

पांडेय जी सारी कहानी और चिंताएं समझ गए थे ,,,शहर में  व्यापर था और दिल तो इतना सुन्दर की दुश्मन   भी उनका दीवाना था ,, पूजा पाठ करने वाले पांडेयजी ने ठान लिआ की   उनसे जो बन पड़ेगा करेंगे पर थे तो वो शहरी ,,,किशोर की  समझाई  बात राखी भूलती नहीं थी ,,उसे याद है एक बार किशोर ने फोन पर कहा था किसी भीं शहरी पर विश्वास नहीं करना और खासकर के अमीर पर ,,, पांडेयजी दोनों गुड़ुओं से परिपूर्ण थे।  गाडी ने शहर में आने का इशारा देना शुरू ही किया था की राखी ने नज़र बचाते हुए निकल गई और पांडेयजी  ढूँढ़ते रह गए ,,

राजू के बताये पते  पर रखी पहुंची और दरवाज़े को उम्मीद से दस्तक दी  तो,,,,
"आदमी" - हांजी कौन
राखी;जी मैं  किशोर की पत्नी,,,   ये हैं  ?
आदमी : हाँ वो  गांव गया हुआ है यही कुछ १०  दिन  हुए है
राखी :मैं  तो गांव से ही आ  रही हूँ
नींद तो जैसे चिंता  में बदल गयी  छोटू अपने दोस्त की ये बात जानकर हैरान हो गया की किशोर का पता नहीं और उसे कुछ खबर नहीं। ... सोच  में डूबता  जा रहा था की राखी के गिरते आंसुओ ने उसे वापस खींच  लिया। ...फ़ोन तो ऐसे घूमने लगा जैसे अभी  किशोर उठाएगा और  बोलेगा आ रहा  उधर  से आती तो सिर्फ कंप्यूटर की आवाज़ की ये नंबर बंद है  , पता लगाने पर ये खबर मिली की किशोर ने राखी के लये कुछ लिया  था  और उसी में व्यस्त रहता था  किसे  पता था की राखी से प्यार करने की आदत उसे परेशानी में दाल देगी `

आज शहर में आए तीसरा दिन था और किशोर   की कुछ खबर नहीं थी यहाँ तक की रखे करेले भी जवाब दे गए थे।
सुबह से राखी के ज़हन में पांडेयजी का चेहरा घूम रहा था ,,उसे याद आया की पांडेयजी ने उसे एक नंबर दिया था ढूंढने  पर उसके पर्स से दो पर्ची निकली दोनों में नाम नहीं था एक थी की राजू की और एक पांडेय जी की राजू को वो फ़ोन नही करना चाहती थी उसने एक पर्ची उठाई और डरते हुए मिला दिया फ़ोन किस्मत तो खेल ही रही थी  भी तो राजू को मिल गया  , उसके सवाल उससे झेले नहीं गए और उसने झट से फ़ोन काट दिया.. और  पांडेय जी को मिलाने की और उसका डिल चिल्ला कर बस यही बोल रहा की कोई  उसकी मदद करो।
पांडेयजी; हेल्लो कोन
राखी; मैं  राखी ,, पता नहीं चला  इनका। आप कुछ मदद कर दीजिए। ..
पांडेयजी ; हां मैं  कुछ करता हूँ
जैसे पांडेयजी वैसे उनके काम उसी शाम को पता लगा लिए की क्या हुआ


पर वो बताने में घबरा रहे थे की शहर के पुलिस अधिकारी के घर के सामने ज़मीन ली थी राखी के नाम की,,अब उन्हें ये दिक्कत थी की  उनके सामने एक मज़दूर रहेगा,,,, बहुत समझने पर जब नहीं  माना बात इतनी बड़  गई   उसे बंधी बना लिआ और ये ज़िद्द पकड़ ली कि जब तक किशोर ज़मीन के कागज़ नहीं  दे देता तब तक खाना  नहीं देगा। ...
यह बात जब राखी को पता चली तो उसके चेहरे पर दो भाव थे एक तो डर का की कहीं किशोर को कुछ हो न जाए और दूसरा उसको बहुत गर्व हो रहा थी की उसका पति इतनी हिम्मत रखता है की वो लड़ रहा है अपनी चीज़ के लिए


पुलिस वाले के घर में नौकर  कमी नही थी ,,मालिकिन का  सुन्दर  गरीब को देखती थी उसकी कहानी सुनती और उसे अपने घर में काम दे देती और इसी  उठा कर राखी ने उनके घर में प्रवेश कर लिए अब राखी की आदत थी रोने का नाटक करने की गांव में भी जब चार औरतें बैठती थी घर की  लेकर रोटी ही थी। .
उसके इस आंसुओं को देख कर मंदिर से उसे मालकिन अपने घर ले आई। .राखी का आधा काम तो हो गया था। अब बरी थी किशोर को ढूंढने की ,,,मालकिन को भी पता नहीं थ किशोर के बारे में अब पीछे वाला कमर मालिक साहब को ह  वह की  मालकिन इतनी व्यस्त थी की  सोचा ही न की वह की हो रहा। .शाम हुई कूड़े का डिब्बा लिए रख पहुंची सीधे उस कमरे के बाहर दरवाज़ा खोल तो  धुल की चादर उस पर आ गिरी ,,,हटाते हुए चादर के  नज़ारा देखा वो किसी भी पत्नी के समझ के बाहर  था ,, रस्सी में बंधा किशोर ज़मीन पर पड़ा हुआ था। .
पानी पानी करने की आवाज़ जब राखी   के कानो पर पड़ी थी तब उसे होश आया और उसने किसोर के हाथ खोल उसे पानी पिलाया। .चुल्लू से पानी पी रहा किशोर पानी और  के गिरते आंसू पि रहा था,,,होश आय ऑटो अपनी आवाज़ सुन किशोर को लगा की उसकी याद्दाश कुछ खराब हो गई ही है और खाने की कमी   हो रहा और आखरी समय उसे अपनी पत्नी याद रही पर  उजाले में जब उसने राखी को देखा तो हैरान और रोने लगा उसके  निकला की मैंने तेरे  केलिए एक घर लिया है तुझे अब कोई परेशानी नहीं होगी बोलते ही बेहोश हो गया ,,ये सब देखकर राखी के अन्स्सून थमने का नाम नही ले रहे थे। खुदको होश में लेट वक़्त उसने अपने आपको सम्भल और सुबह किशोर को भागने का सोचने लगी। .खाने में मनन तो कर  रहा था उसका की ज़हर मिला दे पर मालिकिन का की कुसूर वो तो अची थी ,,बेहोशी की दावा डाल उसने बहुत ही लज़ीज़ज़ कहना बनाया की सब  खाए ,,अब वो अपने कमरे में  लेटी थी और दवा के असर दिखने का इंतज़ार कर  रही थी रात के करीब दो बज रहे थे सब बेहोशी में थे की दरवाज़ा खोल राखी किशोर को ले भागी और वह एक चोट सा खत छोड़ गई



साहब ,मैं राखी आप अपने जीवन में एक बात याद रखियेगा की पत्नी तो अपने पति के प्राण के लिए यमराज से लड़ जाती है आप तो फिर भी एक इंसान थे।




समाम्प्त



1 comment:

  1. An interesting storyline till the end.... and very descriptive... . i could visualize the scenario...well done

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