Wednesday, August 24, 2016


                            बेटे की हरकत बनी  शर्मिन्दिगी 

कौशलपुर की तो शाम ही जैसे शुरू नहीं होती थी अगर नारायण जी का कुल्फी का ठेला गाँव की हर गली से न निकल जाए। 
नारायण जी बहुत ही सीधे-साधे व्यक्ति थे स्वाभाव से कोमल और उसूलों के पक्के वाले व्यक्तित्व के थे।दो ही काम थे दिन के सुबह खेती करते और शाम को सड़क के पास कुल्फी बेचते ,, बच्चों से नारायण जी का अलग लगाव था कभी कभी तो अगर बच्चे को कुल्फी के लिए ज़िद्द करते देखते और उनके माता या पिता मना कर रहे होते थे तो खुद ही मुफ़्त की कुल्फी खिला देते बच्चों के आँखों में आँसूं नहीं देख सकते थे। नारायण जी का एक बेटा था डब्बू ,,अब बिन माँ का बेटा कैसा हो सकता था बिगड़ा ज़िद्दी ,,डब्बू में भी ये सब अवगुण थे  हालाँकि नारायण जी के सामने कभी कुछ नहीं करता था क्यूँकि जनता था बखूबी की नारायण जी की लाठी और उनका गुस्सा बहुत तेज़ बरसता है ,, और बुरी आदत थी तो वो भी बस रुपयों की ,,,,जहा देखो जिससे देखो शर्त लगाता उधार माँग लेता कभी ये तो कभी वो बहुत बवाल थे उसके। 
दिन गुज़रते गए और नारायण जी की उम्र ढलती गई ,,,गाँव में अब सब बदल रहा था ,,नई सड़कें नए मकान पर नहीं बदला था तो नारायण जी का कुल्फी का ठेला और उनका बच्चों की तरफ उनका प्यार ,,,डब्बू भी बड़ा हो गया था और उसकी रुपयों की लालच भी बाद गई थी कहने को तो वो पढ़ने जाता था पर उसकी नज़र थी तो गाँव के सबसे अमीर प्रधान जी की लड़की पर ,,,सोच लिया था उसने की उसकी लड़की से शादी करेगा तो खूब आमदनी हो जाएगी। अब ज़िद्दी तो था ही ऐसा चक्कर चलाया की प्रधान जी राज़ी हो गए ,,हालाँकि नारायण जी को ये रिश्ता नहीं पसंद था पर लोग बुरे नहीं थे तो वो भी राज़ी हो गए और शादी सबकी सहमति से हो भी गई। ... 
शादी को एक साल हो गया था डब्बू के रंग एक दम बदल गए थे अब उसके ज़बान पर सिर्फ उसके ससुराल वाले ही थे ,,जब देखो सासु माँ सौसर जी ही रटता रहता था अपने खुद के पिताजी उससे बोझ लगने लगे थे पर कभी दिखा नहीं सकता था क्यूंकि डर तो अभी भी था नारायण जी का उसके मन में ,,घर में आज एक सदस्य जुड़ा गया था ,नारायण जी का पोता अस्पताल से आया था। .उसे देख नारायण जी फूले नही समा रहे थे। .अब नारायण जी को वैसे ही बच्चों से इतना प्रेम था और ये तो खुद का ही खून था और उनके  वंश का वारिस। 

नारायण जी : आज कितना अच्छा दिन है आज मेरे पोते का नामकरन है। मुझे समझ नहीं आ रहा क्या नाम रखूं इसका 
मिश्रा जी : वो तो सब ठीक है पर क्या तुम्हारा बेटा तुम्हे ये मौका देगा ?
नारायण जी : अरे ऐसे क्यों बोल रहा है मेरा बेटा नालायक है गैर ज़िम्मेदार नहीं की अपने बाप को ही भूल जाए। 
मिश्रा जी: जिस तरह वो ससुर जी का चमचा है मुझे नहीं लगता पर चलो मैं यही दुआ करता हूँ की तुम ही नाम रखो ,,चलो शाम को मिलते हैं ,,,जी सिया राम। 

आज घड़ी भी महसूस कर रही थी की नारायण जी कितने बेचैन है जिस तरह से उसे नारायण जी घूर रहे थे बार बार उससे तो उसे यही लग रहा था और नारायण जी घड़ी  को कोस रहे थे की कम्बखत आज बड़ी धीरे चल रही है ,,इतने में पंडितजी की दस्तक ने ये सिलसिला भी समाप्त कर दिया और कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। ....... 
पंडितजी : जिसे भी नाम रखना है आगे आइये और लड़के का नाम क शब्द से रखें। 
डब्बू : सासु माँ जी कुछ अच्छा  नाम रखियेगा। 

बस मिश्रा जी  का शक सही था कोने में खड़े मिश्रा जी ये सब देख रहे थे। .ये नज़ारा उनकी आँखें देख नहीं पाई और शर्मिंदा भरी निगाहें निचे किए वो बीच में ही चले गए ,,,,पर नारायण जी बिलकुल भी दुखी नही दिखे बल्कि उन्होंने मन में सोच लिया  दुनिया कुछ भी बुलाए वो उसे क से कृष्णा ही बुलाएंगे ,,अब उसके दो नाम थे करन और कृष्णा सिर्फ नारायण जी के लिए  ....... 

कृष्णा अब बड़ा हो रहा था और नारायण  हर  समय घर पर ही रहते थे ,,,कृष्णा का दिन अब कुछ ऐसा जाता की सुबह मंदिर दिन भर अपने दादाजी के मुह से भजन सुनता और शाम को नहर की किनारे खेलता दादाजी के साथ ,,अब दादाजी के साथ इतना रहता था की अपने पिता से ज़्यादा दादाजी को मानने लगा था ,,और संस्कार भी पुरे दादाजी वाले ,,,

कृष्णा के बारहवे जन्मदिन की रात 
शालिनी : क्योंजी ,पिता जी के पास इतना कहा से आया की करन (कृष्णा ) के लिए सोने के कढ़े ले आए। 
डब्बू : अरे ट्यूब बेल के पास एक खेत है वो पिताजी ने किराए पर उठा  रखा है  बस वही से सारा आता है। 
शालिनी: तो हम उसे बेच क्यों नहीं  देते ?
डब्बू : अरे वो माँ के नाम की ज़मीन है पिताजी जीते जीते जी उनकी आखरी निशानी बेचने नहीं देंगे। 
शालिनी : तो अगर वो ज़िंदा ही नही रहे तो तब तो बेच सकते हैं ?
डब्बू: अरे पागल हो की ऐसा क्यों बोल रही पिताजी क्यों मरे ?
शालिनी: सोचो अगर पताजी को हम मार दे तो शायद हम उन पैसों  जा पाएँ,,,और करन का दाखिल किसी अचे से स्कूल में करवा पाएंगे ,,,अब जीतेजी तो काम आ नही रहे मारने के बाद ही आ जाएँ। ....... 
दब्बू: हाँ शायद तुम सही बोल रही ठीक है कल नाश्ते में ज़हर दे देंगे। 

पर शायद वो भूल गए थे की उस कमरे में कोई और भी था। ."कृष्णा" जो अभी तक सोया नहीं था ,,वो ये सब सुन रहा था। .कृष्णा इतना भी छोटा नहीं था की उसे कुछ समझ न आए। .कृष्णा को  विश्वास ही नहीं हो रहा था की जिन दादाजी को वो भगवान् मंटा था उन्हें कोई जान से मारने को बोल रहे थे और वो भी उसके माता-पिता ,,
करन तो जैसे उस पल ही मर गया अब कृष्णा ही ज़िंदा रहेगा उसने सोच लिए था। .मुँह पर हाथ रखकर बिलखता रहा पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया की वो जग रहा है ,और इंतज़ार करता रहा की कब वो लोग सोएंगे। .....तकरीबन आधे घंटे बाद जब डब्बू और शालिनी सो गए तब उठा और नंगे पावँ ही भागा दादाजी के कमरे में और पहुँचते ही दादाजी से लिपट गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। ... नींद टूटी तो  घबरा गया और उसे उठाया।,,,,,

नारायणजी : क्या हुआ बेटा कोई बुरा सपना देखा क्या ?
कृष्णा : नहीं दादाजी आज मैंने बुरी हकीक़त देखि और सुनी ,,,
नारायणजी : अरे ऐसा क्या हो गया ,
कृष्णा : (रोते हुए ) दादाजी चलिए इस घर से कहीं दूर मुझे नहीं रहना यहाँ 
नारायणजी /: अरे बेटा कहा चलें यहाँ तो सब अपने रहते है इन्हें छोड़कर कहाँ जाएंगे ?

रोते रोते कृष्णा ने पूरी बात नारायण जी को सुनाई और उनसे लिपट गया। ...ये सब सुनकर नारायणजी सुन्न पढ़ गए। .उनका बेटा खुद उन्हें जान से मार देना  चाहता  है ,,,कुछ पल तो कुछ समझ ही नहीं आया की  करें  क्या पर अब पानी सर से ऊपर निकल चुका था। ..नारायणजी ने अपनी लाठी उठाई और कुछ भी नहीं सोचा सीधे डब्बू में कमरे में गए और बीएस क्या था फिर बरसा दी लाठी दोनों के ऊपर कहाँ लग रही पता नही किसको लग रही पता नहीं बस लाठी बरस रही थी। ..शोर शराबा मच गया पूरा गाँव इक्क्ठा हो गया थोड़े समय में जब बात पता चली तो लोग दोनों पति पत्नी पर थू थू करने लगे ,,,,इतने में नारायण जी आवाज़ आई "आज के बाद अगर तुम दोनों में से कोई भी इस गली में भी दिख गया तो इसी तरह मेरी लाठी तमसे बात करेगी बाकि बात रही तो कृष्णा की जब तक इन बूढी हड्डियों में ताकत है मैं इसका पालन पोषण करूँगा और इस बात का ध्यान रखूंगा की ये तुम्हारी  तरह कभी न बने "  


आज की सुबह हर सुबह की तरह थी बस अलग था तो वो नज़ारा जिसमे नारायण जी कुल्फी का ठेला गाँव की गलियों से निकल रहा था  और  कृष्णा उसे आगे बैठा था और बच्चे कुल्फी कुल्फी चिल्ला रहे थे। ... 


समाप्त। 

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