Saturday, November 19, 2016

अखबार में आज फिर किसी हिंदुस्तानी के घर की तबाही के बारे में छपा है और उसे पढ़ कर संतोष कुमार का खून खौल उठा था। सुबह की चाय भी जैसे फीकी पढ़ गई थी ,,,संतोष ने अपना चश्मा मेज़ पर रखा और बहुत ही क्रोधित आवाज़ में अपने बेटे रूपविजय को आवाज़ दी। रूपविजय जो की पढाई करके अंग्रेजों की सेना में एक पुलिसवाला था जो की अपना काम बड़ी ही ईमानदारी और लगन से करता था ,,उसे इंसान के पहले कानून समझ आता था। रूपविजय बहुत ही सख्त और कठोर किस्म का लड़का था ,,,उसकी शादी तय ही हुई थी पर क्रांति के होर शोर में उसके इस पद की वजह से कोई भी हिंदुस्तानी बाप अपनी बेटी का हाथ उसे नहीं देना चाहता था। इस बात पर रूपविजय और भी गुस्से में रहता था ,,,संतोष का बेटा  उसकी बिलकुल भी नहीं सुनता था ,,नौकरी को लेकर इतना सख्त था की कई बार तो घर के बेटों को भी कारागार के पीछे ले जा चुका था।


रूपविजय : हाँ पिताजी कहिये क्यूँ गला  फाड़ रहे हैं।

संतोष:ये तुम और तुम्हारी सरकार क्या करके मानेगी ,,कल फिर दो लोगों के घर जला दिए।

रूपविजय :पिताजी ये आप बहुत अच्छे से जानते हैं की हमारी सरकार कभी कोई गलत फैसले नहीं करती ,,ज़रूर कोई ऊंच नीच की होगी उन लोगों ने।

संतोष: अरे तुम लोग क्या जानोगे क्रांति ,,वो खून जो लोग अपने देश के लिए बहा रहे हैं ,,तुम कभी नहीं समझोगे ये बात ,,और देख लेना जिस दिन मैं मरकर चला जाऊंगा तुम खुद समझ जाओगे।

रूपविजय : हाँ पिताजी देखा जाएगा अभी मुझे जाने दो ,,नमस्ते।

संतोष एक वृद्ध था पर  उसमे होंसला और लड़ने का दम बहुत था। संतोष का बचपन भी अँगरेज़ की वजह से ही बर्बाद हुआ था ,,भरे गांव के सामने उसके घरवालों को मार डाला था ,,उसमे आज भी उनके खिलाफ बहुत आग थी ,,संतोष भले ही जूते पोलिश करकर गुज़ारा करता था क्यूंकि उसे रूपविजय का एक भी पैसे गवारा नहीं था ,,,संतोष पर एक क्रन्तिकारी भी था उसके आस  पास जो भी घटना होती थी उसके पास हर खबर थी।

शाम के करीब पांच बजे थे संतोष अपनी दूकान हटा रहा था की एक खून से लपटे कपड़ों में एक नौजवान गिरता पड़ता आया ,,,



मुझे बचा लो,, ये लोग मेरी जान लेलेंगे। मैं  अपने भारत को आज़ाद देख ही मरना चाहता हूँ मुझे बचा लो।

जितने में संतोष कुछ समझ पता या कुछ के पाता एक गाडी रुकी और तीन या चार सिपाही उतरे उसे गोली मारी  और उसे उठा ले गए ,,ये सब संतोष की आँखों के सामने ही हो रहा था जैसे कोई बहुत भयानक सपना देख रहा हो संतोष अपनी आँखों पर विशवास नहीं कर पा रहा था। आस पास भीड़ इखट्टा हो गई किसी ने संतोष को किसी तरह उसे घर पहुँचाया ,,घर जाते ही संतोष बिस्तर पर चला गया वहां जाने पर उसे कुछ होश आया और उसके आँखों से आंसू रुक नहीं रहे थे। उसे आज पता चला था की ज़िन्दगी की कीमत कितनी सस्ती है हिंदुस्तान में अंग्रेजों के लिए। क्रोध बढ़ता  ही जा रहा था संतोष का उसके सामने से उस नवजवान का चेहरा नहीं हट रहा था। आज संतोष ने कुछ फैसला कर  लिए था ,,


सुबह होते ही संतोष ने अपना बस्ता लिए और निकल गए घर से।

रूपविजय:अरे पिताजी कहा चले गए आज मुझे या मेरी सरकार को कुछ कहोगे नही। .
नौकरानी : साहब आज वो सुबह ही कहीं निकल गए।

रूपविजय को बहुत आस्चर्य हुआ पर उसने ज़्यादा ध्यान नही दिया। .

चार महीने बाद। ........


रूपविजय :पिताजी आप काफी बदले बदले से दीखते हैं आज कल क्या बात है आपको भी हमारी सरकार से प्यार हो गया क्या?
संतोष :(बड़े ही धीरे आवाज़ में ) बेटा या तो तेरी सरकार रहेगी या मैं।
रूपविजय: मैं कुछ समझा नहीं पिताजी ,पर हाँ सरकार तो रहेगी ,,,(मज़ाक करते हुए )
संतोष  इस बार कुछ बोला नहीं बस रूपविजय को देखकर मुस्कराता रहा ,,रूपविजय चला गया अपने काम पर वैसे ही पीछे के रास्ते से कई लोग घर पर घुसने लगे ,,उसमे से एक थे जो अंग्रेजों के लिए सबसी बड़ी चुनौती थे ,,,तीन चार लड़के और बाकि दो आदमी थे ,,,घर के सबसे छोटे से कमरे में जाकर  बात करने लगे ,,अगर दरवाज़े के कान होते तो वो पक्का अंग्रेजों को चुगली करदेता की वहां क्रांति की बात चल ही थी ,,संतोष अब पूरा क्रन्तिकारी हो गया था उस घटना के बाद संतोष के अंदर आज़ादी की हवा चढ़ गई थी ,,,

रविवार को सब ही आराम कर रहे होते हैं। .वैसा ही हाल कुछ पुलिस स्टेशन में भी था सब नींद में थी की अचानक से खबर आई की किसीने लाल चौराहे पर खून कर दिया और खून भी तो अंग्रेजों के सबसे ऊँचे पद वाले का और खुनी वह मोर्चा कर रहा है खुनी भी वही था शायद जो फरार था और उसपर अंग्रेजों ने इनाम रखा था ,,रूपविजय ने अपनी पिस्तौल उठाई और  आँखों में गुस्सा लिए लाल चौक के लिए निकल गया ,,


वहां पहुंच कर उसने देखा की वहां  काफी भीड़ है  और नारेबाजी हो रही है,, गुस्सा और भी तेज़ हो गया उसने अपनी पिस्तौल हवा में फायर करदी ,इतने में भीड़ भागने  लगी पर,, वहां बैठा शख्स  बिलकुल नही हिला ,,खुदसे न डरते हुए देख रूपविजय को और गुस्सा आया और उसने आओ देखा न ताओ गोली चला दी  ,,उसको लगी जाकर ,,,सब शांत हो गया आस पास ,,सब भाग गए ,,कम्बल हटाया रूपविजस्य ने तो देखा उसका बाप संतोष खून में लिपटा वह मौत के दरवाज़े पर खड़ा था ,,,ये द्रष्य देख देखकर रूपविजय की धरती मानो हिल गई हो आज उसकी नौकरी इतनी खुद्दार थी क्या जो उसने अपने बाप को अपन हाथ से गोली मार दी ,,उसे ज़रा सा भी अंदाज़ नही था की ये उसके हाथों से क्या हो गया था ,,,


संतोष:बेटा इधर आ मेरे पास।

रूपविजय:ये क्या कर रहे थे आप ,,ये क्या हो गया मेरे हाथों। ...

 संतोष :अब समझे की मैं  क्या कहता था किसी को भी लगे गोली वो भी किसी का बाप होता था पर तुमने कभी खबर नहीं थी की क्या दर्द था भारत म। ..पर अब तुम जब अपने खुदके बाप को मार पा रहे हो तब समझ आ रहा तुझे ,,अब बस इतना वादा कर की तू आज से भारत की सेवा करेगा और भारत को आज़ाद करवाने में मेरा सपना पूरा करेगा।

संतोष ने आखरी दम अपने बेटे के पास हो तोड़ दिए ,,ये सब रूपविजय को सम्भाल नहीं पाए ,,,रोरोरकर रूपविजय अपनी कम्मज उत्तर रहा था और पैदल पैदल चलने लगा उसके दिमाग में वो सरे पल आने लगे जो उसने अपने पिताजी के साथ बिताए थे ,,,रस्ते में उसे लार्ड मिले जो इंग्लैंड से कुछ ही दिन पहले आए थे ,,,संतोह की बात उसके दिमाग में बवंडर बना रहे थे। .पिस्तौल उठाई और छह की छह गोलियां उसने लार्ड के सीने पर उतार दी और हर गोली के बाद यही चिल्ला रहा था कि



संतोष ज़िंदाबाद भारत ज़िंदाबाद ,,,,,,

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